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मनुष्यों की स्थिति
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गन्भंमि पुव्वकोडी, तिण्णि य पलिओवमाई परमाऊ। उरग भुय पुव्वकोडी, पलिओवमासंखभागो य॥२॥ शब्दार्थ - परमाऊ - परमायु - उत्कृष्ट आयु। भावार्थ - यहाँ इनसे संबंधित संग्रहणी गाथाएँ दी जा रही हैं, जो इस प्रकार है -
सम्मूर्च्छिम-तिर्यंच-पंचेन्द्रिय जीवों में क्रमशः जलचरों की उत्कृष्ट स्थिति करोड़ पूर्व वर्ष, थलचर-चतुष्पद-सम्मूर्छिम जीवों की स्थिति चौरासी सहस्र वर्ष, उरःपरिसों की तिरेपन सहस्र वर्ष, भुजपरिसर्प प्राणियों की बयालीस सहस्र वर्ष तथा पक्षियों की बहत्तर हजार वर्ष परिमित
है॥१॥
गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों में क्रमशः जलचरों की उत्कृष्ट स्थिति करोड़ पूर्व वर्षों, स्थलचरों की तीन पल्योपम, उरःपरिसरों एवं भुजपरिसरों की करोड़ पूर्व वर्षों एवं खेचरों की पल्योपम के असंख्यातवें भाग जितनी है॥२॥
मनुष्यों की स्थिति मणुस्साणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं। सम्मुच्छिममणुस्साणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं । गम्भवक्कंत्यिमणुस्साणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई। अपजत्तगगब्भवक्कंतियमणुस्साणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णता? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। पजत्तगगम्भवक्कंतियमणुस्साणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई। भावार्थ - हे भगवन्! मनुष्यों की स्थिति कियत्कालिक बतलाई गई है?
हे आयुष्मन् गौतम! इनकी स्थिति जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त परिमित एवं उत्कृष्टतः तीन पल्योपम परिमित परिज्ञापित हुई है।
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