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अनुयोगद्वार सूत्र
गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेजइभागो अंतोमुहुत्तूणो।
भावार्थ - खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यंचयोनिक-जीवों की काल स्थिति के विषय में प्रश्न किया।
इनकी स्थिति जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टतः पल्योपम के असंख्यातवें भाग जितनी होती है।
सम्मूर्च्छिम-खेचर-पंचेन्द्रिय जीवों की स्थिति के विषय में पूछा। इनकी स्थिति जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्टतः बहत्तर हजार वर्षों की होती है। अपर्याप्तक-सम्मूर्छिम-खेचर-पंचेन्द्रिय जीवों के विषय में पृच्छा की। इनकी स्थिति जघन्यतः और उत्कृष्टतः अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होती है। पर्याप्तक-सम्मूछिम-खेचर-पंचेन्द्रिय जीवों के विषय में प्रश्न है। .
इनकी स्थिति जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्टतः अन्तर्मुहूर्त कम बहत्तर हजार वर्षों की होती है।
गर्भव्युत्क्रांतिक-खेचर-पंचेन्द्रिय जीवों के विषय में पूछा।
इनकी स्थिति जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त प्रमाण एवं उत्कृष्टतः पल्योपम के असंख्यातवें भाग जितनी होती है।
अपर्याप्तक-गर्भव्युत्क्रांतिक-खेचर-पंचेन्द्रिय जीवों की स्थिति के संदर्भ में प्रश्न है। इनकी स्थिति जघन्यतः और उत्कृष्टतः अन्तर्मुहर्त प्रमाण होती है। पर्याप्तक-गर्भव्युत्क्रांतिक-खेचर-पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों की स्थिति कियत्कालिक प्रज्ञप्त
इनकी कालस्थिति जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्टतः अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के असंख्यातवें भाग जितनी होती है।
संग्रहणी गाथाएँ एत्थ एएसि णं संगहणिगाहाओ भवंति, तं जहा - सम्मुच्छिम पुव्वकोडी, चउरासीइं भवे सहस्साई। तेवण्णा बायाला, बावत्तरिमेव पक्खीणं॥१॥
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