________________
खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की काल स्थिति
३४३
हे आयुष्मन् गौतम! इनकी जघन्य और उत्कृष्ट - दोनों ही स्थितियाँ अन्तर्मुहूर्त परिमित हैं।
पर्याप्तक-गर्भव्युत्क्रांतिक-भुजपरिसर्प-थलचर-पंचेन्द्रिय जीवों की काल स्थिति के संबंध में पृच्छा की। ___ हे आयुष्मन् गौतम! इनकी स्थिति जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टतः अन्तर्मुहूर्त कम एक करोड़ पूर्व वर्षों की होती है।
विवेचन - गाय, भैंस आदि चार पैर वाले तिर्यंच पंचेन्द्रिय चतुष्पद स्थलचर कहे जाते हैं। पेट के सहारे रेंगने (चलने) वाले सर्प, अजगर आदि जीव उरपरिसर्प स्थलचर कहे जाते हैं। भुजाओं (पैरों) के सहारे रेंगने वाले चूहा, नेवला आदि जीव भुजपरिसर्प स्थलचर कहलाते हैं। ये तीनों भेद स्थलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय के होते हुए भी चलने के प्रकार में फर्क होने से इन्हें अलग-अलग भेदों के रूप में बताया गया है।
खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की काल स्थिति खहयरपंचिंदियपुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेजइभागो। सम्मुच्छिमखहयरपंचिंदियपुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं बावत्तरिं वाससहस्साई। अपजत्तगसम्मुच्छिमखहयरपंचिंदियपुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। पजत्तगसम्मुच्छिमखहयरपंचिंदियपुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणंबावत्तरिंवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई। गब्भवक्कंतियखहयरपंचिंदियपुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेजइभागो। अपजत्तयगब्भवक्कंतियखहयरपंचिंदियपुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं।
पजत्तगगन्भवक्कंतियखहयरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णता? -
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org