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आवश्यक सूत्र का स्वरूप विश्लेषण
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एवं महाभाष्यकार पतंजलि ने 'शब्दाः कामदुघाः' - ऐसा जो कहा है, उसका शब्दों के विस्तीर्ण, व्यापक और वैशद्यपूर्ण अर्थ की ओर संकेत है। अणुयोग शब्द से इसकी संगति घटित होती है।
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आवश्यक सूत्र का स्वरूप विश्लेषण जइ आवस्सगस्स अणुओगो, किं, णं अंगं? अंगाइं? सुयखंधो? सुयखंधा? अज्झयणं? अज्झयणाई? उद्देसो? उद्देसा?
आवस्सयं णं णो अंगं, णो अंगाई, सुयखंधो, णो सुयखंधा, णो अज्झयणं, अज्झयणाई, णो उद्देसो, णो उद्देसा।
शब्दार्थ - सुयखंध - श्रुतस्कंध, अज्झयणं - अध्ययन।
भावार्थ - यदि यह अनुयोग आवश्यक का है तो वह (आवश्यक सूत्र) एक अंग रूप है या अनेक अंग रूप है? एक श्रुतस्कंध रूप है या एकाधिक श्रुतस्कंध रूप है? एक अध्ययन रूप है या अनेक अध्ययन रूप है? एक उद्देशक रूप है या अनेक उद्देशक रूप है?
. आवश्यक सूत्र न एक अंग रूप है और न ही अनेक अंग रूप। वह एक श्रुतस्कंध रूप है, एकाधिक श्रुतस्कंध रूप नहीं है। वह एक अध्ययन रूप नहीं है, एकाधिक अध्ययन रूप है। न एक उद्देशात्मक है न अनेक उद्देशात्मक है। _ विवेचन - आगम पुरुष की जो परिकल्पना की गई है, वहाँ श्रुतस्कंध शब्द का विशेष रूप से प्रयोग दृष्टिगत होता है। जिस प्रकार एक पुरुष के भारवहन योग्य दो स्कंध-कंधे होते हैं, उसी प्रकार जो आगम दो विशिष्ट भागों में विभक्त होते हैं, उन्हें श्रुतस्कंध कहा जाता है। क्योंकि उन पर धर्मदेशना या तत्त्व रूप भार सन्निहित होता है। आवश्यक सूत्र में एक ही श्रुतस्कंध है। उसी में विवक्षित तत्त्व विवेचित है। इसीलिए इसे एकाधिक श्रुतस्कन्ध रूप नहीं कहा गया है।
यह अनंगप्रविष्ट - अंगबाह्य श्रुत में समाविष्ट है। इसलिए इसमें एक या अनेक अंगरूप (द्वादशांग गणीपिटक रूप) नहीं है।
पाठंतरं -
आवस्सयं किं Wआवस्सयस्स
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