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अनुयोगद्वार सूत्र
अतएव यहाँ उत्कालिक शब्द का अर्थ - ‘काल की मर्यादा को उल्लंघन किया हुआ' समझना चाहिये। आवश्यक सूत्र प्रतिदिन उभय संध्या के काल में करना अनिवार्य होने से इसके लिये कोई अस्वाध्याय काल नहीं बताया है।
. अनुयोग - विवक्षा जइ उक्कालियस्स अणुओगो, किं आवस्सगस्स अणुओगो? आवस्सगवइरित्तस्स अणुओगो?
आवस्सगस्स वि अणुओगो, आवस्सगवइरित्तस्स वि अणुओगो। इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च आवस्सगस्स अणुओगो।
शब्दार्थ - आवस्सगस्स - आवश्यक के, वइरित्तस्स - व्यतिरिक्त-सिवाय।
भावार्थ - यदि उत्कालिक श्रुत के (उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा एवं) अनुयोग होते हैं तो क्या वे आवश्यक सूत्र के होते हैं अथवा आवश्यक से भिन्न उत्कालिक श्रुत के होते हैं? '
आवश्यक सूत्र के भी (उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और) अनुयोग होते. हैं और आवश्यक से भिन्न उत्कालिक श्रुत के भी ये होते हैं।
परन्तु यहाँ आवश्यक श्रुत के ही अनुयोग आदि प्रस्थापित - प्रारंभ किए जायेंगे।
विवेचन - अनुयोग शब्द 'अनु' उपसर्ग एवं 'योग' के मेल से बना है। ‘अनु' - आनुकूल्य, अनुसरण, अनुगमन एवं अनुकथन का द्योतक है। श्रुत - सूत्र में निहित अर्थ को समीचीन संगति के साथ जोड़ना अनुयोग का आशय है। इस रूप में उपदिष्ट, अनुशिष्ट, अनुज्ञापित, अभिप्राय, आशय या भाव यथावत् रूप में हृदयंगम होता है।
प्राकृत के 'अणओग' शब्द का ‘अनुयोग' के साथ-साथ अणुयोग भी संस्कृत रूपान्तरण बनता है। अनुयोगद्वार सूत्र की वृत्ति में अणु शब्द को लेते हुए विशेष रूप से विवेचन किया है। 'अणु' शब्द सूक्ष्मतम पौद्गलिक इकाई के अतिरिक्त लघु-छोटे या अतिसंक्षिप्त का भी द्योतक है।
सूत्र अणु या छोटा होता है। उसका अर्थ विस्तृत होता है। यों अणुयोग शब्द भी अतिसंक्षिप्त आशय को विस्तृत अर्थ के रूप में व्यक्त करने का माध्यम है। सुप्रसिद्ध वैयाकरण
* अनुयोगद्वार सूत्र वृत्ति, पत्रांक - ७
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