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________________ भेद-विवक्षा : अभिधेय सूचन (४) जइ अणंगपविट्ठस्सक अणुओगो, किं कालियस्स अणुओगो? उक्कालियस्स अणुओगो? कालियस्स वि अणुओगो, उक्कालियस्स वि अणुओगो। इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च उक्कालियस्स अणुओगो। ' शब्दार्थ - कालियस्स - कालिक-विशिष्ट समय संबद्ध, उक्कालियस्स - उत्कालिकसमय विशेष के प्रतिबंध से विवर्जित। भावार्थ - यदि अनंगप्रविष्ट श्रुत में उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग की प्रवृत्ति होती है तो क्या कालिक श्रुत एवं उत्कालिक श्रुत में भी ये सब प्रवृत्त होते हैं? कालिक और उत्कालिक दोनों में ही उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग की प्रवृत्ति होती है। परन्तु यहाँ उत्कालिक श्रुत का ही उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा एवं अनुयोग प्रस्थापित किया जायेगा। - विवेचन - कालिक श्रुत - जिन आगमों का दिन तथा रात्रि के प्रथम एवं अंतिम प्रहर में अध्ययन करना विहित है, उन्हें कालिक श्रुत कहा जाता है। बहुश्रुत भगवंत कालिक श्रुत की व्याख्या इस प्रकार फरमाते हैं - "अंगसूत्र एवं अंगसूत्रों से सीधे शब्दशः संदर्भ ग्रहण करके जिन आगमों की रचना हुई हैं, वे एवं जो गणधरों के सिवाय शेष स्थविरों (दस पूर्वधरों से चौदह पूर्वधरों) के द्वारा भगवान् से सीधा अर्थ ग्रहण करके रचित होते हैं। वे सब कालिक सूत्र कहे जाते हैं। उत्कालिक सूत्र - जिन आगमों का अनध्याय या अस्वाध्याय काल के अतिरिक्त कालिक से भिन्न काल में भी अर्थात् दिन एवं रात्रि के प्रथम तथा अंतिम प्रहर के सिवाय अन्य प्रहरों (दूसरे एवं तीसरे प्रहरों) में भी अध्येय हैं, उन्हें उत्कालिक श्रुत कहा जाता है। अंग सूत्र के भावों को लेकर स्थविरों के द्वारा स्थविरों के शब्दों में रचित होने वाले आगम उत्कालिक श्रुत कहे जाते हैं। यहाँ पर आगे के सूत्र में आवश्यक सूत्र को भी उत्कालिक श्रुत के रूप में बताया जायेगा। पाठंतरं - * अंग बाहिरस्स Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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