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________________ २८२ अनुयोगद्वार सूत्र ___इस अपेक्षा से कहा जाता है, विज्ञान परमाणु के सूक्ष्म स्वरूप तक, जिसका सर्वज्ञों ने अपने अपरिसीम ज्ञान द्वारा साक्षात्कार किया, अब तक नहीं पहुंच पाया है। विज्ञान का यह सिद्धांत है कि जहाँ तक उसने जाना है, वह अन्तिम सत्य नहीं है उसमें तद्विषयक अनेक संभावनाएँ छिपी रहती हैं। तत्थ णं जे से ववहारिए से णं अणंताणताणं सुहुमपोग्गलाणं समुदयसमिइसमागमेणं ववहारिए परमाणुपोग्गले णिप्फज्जइ। शब्दार्थ - अणंताणताणं - अनंतानंतों का, समुदयसमिइसमागमेणं - समुदय - समितिसमागम द्वारा। भावार्थ - व्यावहारिक परमाणु का क्या स्वरूप है? __ व्यावहारिक परमाणु पुद्गल अनंतानंत सूक्ष्म परमाणु पुद्गलों के एकीभाव सम्मिलन या समन्वय से निष्पन्न होता है। व्यावहारिक परमाणु का विश्लेषण से णं भंते! असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेजा? हंता! ओगाहेजा। से णं तत्थ छिजेज वा भिजेज वा? णो इणढे समढे, णो खलु तत्थ सत्थं कमइ। ' शब्दार्थ - असिधारं - तलवार की धार, खुरधारं - छुरे की धारा, ओगाहेजा - अवगाहित करे, छिज्जेज - छिन्न किया जाय, भिजेज - भिन्न किया जाय, सत्थं - शस्त्र, कमइ - करता (चलता)। भावार्थ - हे भगवन्! क्या तलवार या छुरे की धार को (व्यावहारिक परमाणु) अवगाहित कर सकता है? हाँ, अवगाहित कर सकता है। क्या उसका छेदन-भेदन किया जा सकता है? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। शस्त्र वहाँ नहीं चल सकता। - विवेचन - सिद्धांत चक्रवर्ती नेमिचन्द्रचार्य द्वारा गोम्मट्सार के जीवकांड में परमाणु के संदर्भ में चर्चा आई है - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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