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परमाणू दुविहे पण्णत्ते । तंजहा
सुह से ठप्पे ।
परमाणु स्वरूप
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सूक्ष्म, ववहारिए - व्यावहारिक ।
शब्दार्थ - सुह भावार्थ- परमाणु कितने प्रकार का है? परमाणु दो प्रकार का बतलाया गया है उनमें जो सूक्ष्म परमाणु है, वह स्थाप्य स्थापनीय है।
विवेचन - 'परमश्चासौ अणु इति परमाणु' - परम ( सर्वाधिक सूक्ष्म) या सूक्ष्मता का अन्तिम रूप परमाणु है। तत्त्वार्थ राजवार्तिक एवं भाष्य में परमाणु के संबंध में उल्लेख हुआ हैकारणमेव तदन्त्यं, सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः । एक रस गंधवर्णो, द्विस्पर्शः कार्यलिंगश्च ॥
सुहुमे य १ ववहारिए य २ । तत्थं णं जे से
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२८. १
१. सूक्ष्म और २. व्यावहारिक ।
अन्ते भवः अन्त्यम् - परमाणु सबसे सूक्ष्मतम कारण है, नित्य है, एक रस, एक गंध, एक वर्ण तथा दो स्पर्शयुक्त हैं। स्वतंत्र रूप में उसका अनुमान नहीं किया जा सकता क्योंकि सर्वाधिक सूक्ष्मता के कारण वह किसी भी प्रकार से दृष्टिगम्य हो नहीं सकता। वह कार्यलक्षण है । परमाणुओं के स्कंध से जो कार्य निष्पन्न होता है, उस कार्य को देखकर ही उसका अनुमान किया जा सकता है। उसको अन्त्यकरण इसलिए कहा गया है क्योंकि स्कंध जब सर्वथा विकीर्ण हो जाते हैं तो परमाणु ही शेष रहता है, इसलिए वह कभी नष्ट नहीं होता। उसे स्थाप्य इसलिए कहा है कि वह बाह्य व्यवहार में अनुपयोगी है, इसलिए वह केवल वर्णन या स्थापन का ही विषय है।
वर्तमान वैज्ञानिक जगत् में अलबर्ट आइन्स्टीन ऐसे वैज्ञानिक हुए, जिन्होंने अपने जीवन में सबसे बड़ी दो खोजें कीं । प्रथम परमाणु का स्वरूप विश्लेषण एवं द्वितीय आपेक्षिकता के सिद्धांत (Theory Of Relativity) का प्रतिपादन ।
वैज्ञानिक भाषा में जिसे परमाणु (Atom) कहा जाता है, जैन दर्शन की भाषा में वह व्यावहारिक परमाणु है, तत्त्वतः परमाणु नहीं है। विज्ञान के अनुसार तथाकथित परमाणु के दो भाग होते हैं - नाभिक एवं बाह्य कक्षाएँ ।
नाभिक में न्यूट्रोन एवं प्रोटोन होते हैं जो समतुल्य होते हैं। बाह्य कक्षाओं में इलैक्ट्रोन होते हैं, जो तीव्र वेग से नाभिक के चारों ओर चक्कर लगाते रहते हैं।
यह विभाजन परमाणु के समवायगत स्कंध का सूचन करते हैं।
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