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अनुयोगद्वार सूत्र
है, किन्तु तरल पदार्थों में वह शिखा कोठी के अंतर्गत ही हो जाती है। इसलिए यहाँ पर रसमान प्रमाण को धान्यमान प्रमाण से चतुर्भाग अधिक एवं आभ्यंतर शिखायुक्त बताया है।
एएणं रसमाणपमाणेणं किं पओयणं?
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एएणं रसमाणप्पमाणेणं वारक- घडक - करक- कलसिय- गागरिदइयकरोडियकुंडियसंसियाणं रसाणं रसमाणप्पमाणणिव्वित्तिलक्खणं भवइ । सेत्तं रसमाणपमाणे । सेत्तं माणे ।
भावार्थ - इस रसमान प्रमाण का क्या प्रयोजन है?
इस रसमान प्रमाण से वारक, घट, करक, कलशिक, गागर, दृति, करोडिका, कुंडिका आदि वैविध्यपूर्ण पात्रों में संचित रस के मान प्रमाण का बोध होता है। यह रसमान प्रमाण का प्रयोजन है।
यह मान का विवेचन है ।
विवेचन इस सूत्र में प्रयुक्त रस शब्द तरल पदार्थों के लिए प्रयुक्त है। इसके मान के संबंध में पात्रों का यहाँ उल्लेख आया है, जिनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है वारक वारयतीति वारः, वारको वा जो गिरने न दे, सुरक्षित रखे, कहा जाता है। 'क' प्रत्यय स्वार्थक है।
उसे वारक
घट
यह सबसे छोटे मृत्तिका पात्र का नाम था ।
करक यह घट का विशाल रूप था । ( राजस्थान में मूण)
कलशिक - विशाल ताम्र आदि का धातुपात्र ।
गागर
यह क्रमशः बड़ा पात्र है। हिन्दी साहित्य में घड़े के लिए प्रयुक्त होता है । दृति - चमड़े के बने कुत्य (कूंपे का नाम )
करोडिका - नाद - जिसका मुख जितना चौड़ा हो उतना ही उसका आयतन हो 1
कुंडका - धातु आदि की बनी कुंड ।
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उन्मान प्रमाण
से किं तं उम्माणे ?
उम्मा - जं णं उम्मिणिज्जइ, तंजहा - अद्धकरिसो, करिसो, अद्धपलं, पलं,
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