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प्रमाण-भेद - रसमान प्रमाण
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२. रसमान प्रमाण से किं तं रसमाणप्पमाणे?
रसमाणप्पमाणे-धण्णमाणप्पमाणाओ चउभागविवडिए अभिंतरसिहाजुत्ते रसमाणप्पमाणे विहिजइ, तंजहा - चउसट्ठिया (चउपलपमाणा ४), बत्तीसिया (अट्ठपलपमाणा ८) सोलसिया (सोलसपलपमाणा १६), अट्ठमाइया (बत्तीसपलपमाणा ३२), चउभाइया (चउसट्ठिपलपमाणा ६४), अद्धमाणी (सयाहियअट्ठाइसपलपमाणा १२८), माणी (दुसयाहियछप्पण्णपलपमाणा २५६), दो चउसट्टियाओ - बत्तीसिया, दो बत्तीसियाओ- सोलसिया, दो सोलसियाओअट्ठभाइया, दो अट्ठभाइय़ाओ-चउभाइया, दो चउभाइयाओ अद्धमाणी, दो अद्धमाणीओ माणी। ___ शब्दार्थ - 'धण्णमाणप्पमाणओ - धान्यमान प्रमाण से, चउभाग-विवहिए - चतुर्भाग विवर्धित - चतुर्थ भाग जितना अधिक बड़ा, अभिंतरसिहाजुत्ते - आभ्यंतर शिखायुक्त, विहिजइ - किया जाता है।
भावार्थ - रसमान प्रमाण का क्या स्वरूप है?
रसमान प्रमाण धान्यमान प्रमाण से चतुर्थ भाग जितना अधिक एवं आभ्यंतर शिखायुक्त होता है। उसके ये प्रकार हैं - चार पल प्रमाण की चतुःषष्ठिका, आठ पल प्रमाण - द्वात्रिंशिका, सोलह पल प्रमाण षोडशिका, बत्तीस पल प्रमाण अष्टभागिका, चौषठपल प्रमाण चतुर्भागिका, एक सौ अट्ठाईस पल प्रमाण अर्द्धमानी तथा दो सौ छप्पन पल प्रमाण मानी होती है। (अर्थात्) दो चतुःषष्ठिका की द्वात्रिंशिका, दो द्वात्रिंशिकाओं की एक षौडशिका, दो षोडशिकाओं की एक अष्टभागिका, दो अष्टभागिकाओं की एक चतुर्भागिका, दो चतुर्भागिकाओं की एक अर्द्धमानी तथा दो अर्द्ध मानियों की एक मानी होती है। ___ 'आभ्यंतर शिखायुक्त' इसका आशय इस प्रकार से समझना चाहिये - जिस किसी कोठी में धान्य भरा हुआ हो एवं कोठी के ऊपर शिखा तक धान्य हो, उसी कोठी में रस (तरल पदार्थ) भरा जाये तो धान्य की बाहर की शिखा जितना रस उस कोठी में ही समाविष्ट हो जाता है। ऊपर शिखा नहीं होती है। अर्थात् कोठी में धान्य भरने पर तो ऊपर शिखा भरती
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