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________________ अनुयोगद्वार सू विवेचन - यहाँ यह ज्ञातव्य है कि आयुर्वेद आदि में तोल के संदर्भ में जहाँ चर्चा हुई है, वहाँ प्रस्थ को ६४ तोलों के समान बताया गया है। प्राचीनकाल में व्यवहार में ६४ तोलों का ही सेर माना जाता था। बाद में ८० तोलों का सेर माने जाने लगा। फिर भी कच्चे और पक्के सेर के रूप में दोनों परम्पराएँ चालू रहीं। अब किलोग्राम का प्रयोग होता है, जो लगभग ८६ तोलों के बराबर होता है। यहाँ आया 'असति' धान्य आदि ठोस पदार्थों को मापने की सबसे छोटी ईकाई थी। संस्कृत में इसके लिए अवाङ्मुख शब्द का प्रयोग होता है । अवाङ्मुख का तात्पर्य हथेली से है । हथेली में जितनी वस्तु आए, वह 'असति प्रमाण' कही जाती है। एएणं धण्णमाणप्पमाणेणं किं पओयणं? २६६ एएणं धण्णमाणप्पमाणेणं मुत्तोलीमुरखइदुर अलिंदओचारसंसियाणं★ धण्णाणं धण्णमाणप्पमाण णिव्वित्तिलक्खणं भवइ । सेत्तं धण्णमाणप्पमाणे । भावार्थ - (इस) धान्यमान प्रमाण का क्या प्रयोजन है ? इस धान्यमान प्रमाण में मुक्तोली, मुख, इदुर, अलिंद, अपचार ये धान्य रखने के पात्र या साधन हैं। जिससे धान्य के मान प्रमाण की निष्पन्नता का ज्ञान होता है। यह धान्यमान प्रमाण का प्रयोजन है। विवेचन - धान्य को मापने के लिए प्रयुक्त साधनों के विभिन्न नामों का जो उल्लेख हुआ है, उसका आशय इस प्रकार है - मुक्तोली - धान्य रखने की ऐसी कोठी जो खड़े मृदंग के आकार की हो अर्थात् मध्य से चौड़ी तथा ऊपर नीचे से संकरी हो । मुरव - एक विशेष माप का सूत निर्मित बड़ा बोरा । इदुर बकरी के बालों से निर्मित मजबूत बोरा, जिसे राजस्थान के थली जनपद में छाटी भी कहा जाता है। Jain Education International अलिंद धान्य को मापने का पात्र विशेष । अपचारी - धान्य को भविष्य में सुरक्षित रखने के लिए भीतर या ऊपर बनाया गया कोठा । ★ सा कोट्ठिया जा उवरिं हेट्ठा संकिण्णा मज्झे विसाला । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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