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________________ दस नाम - कर्मधारय समास २५१ इसीलिए सारस्वत व्याकरण में बहुव्रीहि समास का लक्षण देते हुए लिखा है - बहु समासातिरिक्तं व्रीहि- प्रधानं यस्मिन्नसौ बहुव्रीहिः *। यह सूत्र समास में विद्यमान पदों के अतिरिक्त किसी अन्य पद की प्रधानता का संसूचक है। ३. कर्मधारय समास से किं तं कम्मधारए? कम्मधारे - धवलो वसहो-धवलवसहो, किण्हो मिओ-किण्हमिओ, सेओ पडो सेयपडो, रत्तो पडो-रत्तपड़ो। सेत्तं कम्मधारए। शब्दार्थ - धवलो - सफेद, वसहो - वृषभ, मिओ - मृग, सेओ - श्वेत, रत्तो - लाल। भावार्थ - कर्मधारय समास का कैसा स्वरूप है? धवलो वसहो मिलकर धवलवसहो (धवलवृषभः) किण्हो मिओ मिलकर किण्हमिओ (कृष्णमृगः), सेओ पडो मिलकर सेत पटो (श्वेतपटः) रत्तो पडो मिलकर रत्तपडो (रक्तपटः) - . ये समस्त पद बनते हैं। विवेचन - कर्मधारय समास में विशेषण और विशेष्य अथवा उपमान और उपमेय पदों का मिश्रण होता है। इसमें दोनों का ही महत्त्व रहता है, इसलिए इसको समानाधिकरण युक्त कहा जाता है। संस्कृत व्याकरण में इसे तत्पुरुष के भेदों में माना गया है। यहाँ स्वतन्त्र भेद के रूप में इसका उल्लेख हुआ है, जिससे अर्थ की विशदता स्पष्ट होती है। .. यहाँ दिए गए उदाहरणों में - 'धवल' विशेषण हैं, 'वृषभ' विशेष्य है। यों विशेषण और संज्ञा - दो पदों का एकपदी भाव है। उपमान, उपमेय के मिश्रण से बनने वाले समस्त पद भी इसमें गृहीत हैं। जैसे चन्द्रवत् मुख - चन्द्रमुख। यहाँ मुख उपमेय को चन्द्र उपमान की 'उपमा' दी गई है। किन्तु यहाँ ध्यातव्य है - यदि किसी चन्द्रसदृश मुखवाली स्त्री के संदर्भ में विग्रह किया जाय तो “चन्द्र इव मुखं यस्या सा चन्द्रमुखी" ऐसा विग्रह होगा तथा बहुव्रीहि समास होगा। विशेषण और विशेष्य, उपमेय-उपमान यहाँ भिन्न-भिन्न रूप में दृष्टिगोचर होते हैं, इसलिए सारस्वत व्याकरण में इसकी परिभाषा करते हुए लिखा है - कर्मभेदकं धारयतीति कर्मधारयः । * सारस्वत व्याकरण - १६/४ * सारस्वत व्याकरण - १६/५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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