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________________ २३४ अनुयोगद्वार सूत्र वरूप है? भावार्थ - अचित्तसंयोगनिष्पन्न नाम का क्या स्वरूप है? अचित्त संयोग निष्पन्न नाम इस प्रकार है - जिसके पास छत्र होता है उसे छत्री, जिसके पास दण्ड होता है-वह दण्डी, पट होता हैवह पटी, घट होता है वह घटी तथा कट होता है वह कटी कहलाता है। ये अचित्त संयोग निष्पन्न नाम हैं। विवेचन - यहाँ उदाहरण के रूप में - छत्र, दण्ड, पट, घट और कट का प्रयोग हुआ . है। ये अचित्त या निर्जीव पदार्थ हैं। जिनके पास ये होते हैं, उनके इन-इन के आधार पर नाम पड़ जाते हैं, इसीलिए इन्हें अचित्त संयोग निष्पन्न नाम कहा गया है। . से किं तं मीसए? मीसए - हलेणं हालिए, सगडेणं सागडिए, रहेणं रहिए, णावाए णाविए। सेत्तं मीसए। सेत्तं दव्वसंजोगे। शब्दार्थ - हलेणं - हल द्वारा, हालिए - हालिक-हल वाला, सकडेणं - शकट-गाड़ी द्वारा, साकडिए - शाकटिक-गाड़ीवान्, रहेणं - रथ द्वारा, रहिए - रथिक-रथ वाला, णावाएनाव या नौका से, णाविए - नाविक-नाव वाला। भावार्थ - मिश्रद्रव्य-संयोगनिष्पन्न नाम का क्या स्वरूप है? मिश्रद्रव्य-संयोगनिष्पन्न नाम इस प्रकार है - हल, शकट, रथ तथा नाव के संयोग से क्रमशः हालिक, शाकटिक, रथिक और नाविक नाम होते हैं। विवेचन - इस नाम को मिश्र इसलिए कहा गया है कि इसमें सचित्त-सजीव तथा अचित्त-अजीव - दोनों का मिश्रित या सम्मिलित रूप प्राप्त होता है। उदाहरण में हल से हालिक तथा शकट से शाकटिक आदि जो उदाहरण दिये गये हैं, वे हल और हल चलाने वाले - हल जोतने वाले मनुष्य से तथा शकट या गाड़ी चलाने वाले मनुष्य से संबंधित हैं। उनमें क्रमशः हल और गाड़ी आदि अचित्त या अजीव हैं तथा उन्हें जोतने वाले या चलाने वाले मनुष्य सचित्त या सजीव हैं। इस प्रकार हालिक शब्द सजीव और अजीव के मिश्रण से बनता है, उसी प्रकार शाकटिक, रथिक, नाविक आदि हैं। उनमें शकट, रथ और नाव अचित्त या अजीव हैं तथा उनके प्रयोक्ता सचित्त या सजीव हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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