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दसनाम - कालसंयोग निष्पन्न नाम
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- क्षेत्रसंयोग निष्पन्न नाम से किं तं खेत्तसंजोगे?
खेत्तसंजोगे-भारहे, एरवए, हेमवए, एरण्णवए, हरिवासए, रम्मगवासए, पुव्वविदेहए, अवरविदेहए देवकुरुए, उत्तरकुरुए । अहवा - मागहे, मालवए, सोरट्टए, मरहट्ठए, कुंकणए। सेत्तं खेत्तसंजोगे।
भावार्थ - क्षेत्रसंयोगनिष्पन्ननाम का क्या स्वरूप है?
क्षेत्रसंयोगजनित नाम इस प्रकार हैं - भरत क्षेत्र में निवास करने वाला - भारतीय, उसी प्रकार ऐरावतीय, हैमवतीय, ऐरण्यवतीय, हरिवर्षीय, रम्यकवर्षीय, पूर्ववैदेहीय, अपरवैदेहीय, देवकौरवीय, उत्तरकौरवीय अथवा मागधीय, मालवीय, स्वराष्ट्रीय, महाराष्ट्रीय, कोंकणीय, कौशलीय आदि हैं।
यह क्षेत्र संयोग का विवेचन है। . विवेचन - प्राचीनकाल से ही भाषा की दृष्टि से व्यक्ति के पहचान की एक विशेष . पद्धति रही है। जिस क्षेत्र में निवास करने वाला जो व्यक्ति हो, उसकी उस क्षेत्र के नाम से पहचान की जाती रही है। इसीलिए व्याकरण में 'भारते भवः' - भारतीय, मालवे भवः - मालवीय, स्वराष्ट्रीय भवः - स्वराष्ट्रीय, महाराष्ट्रे भवः - महाराष्ट्रीय इत्यादि तद्धित प्रत्ययान्तर्वर्ती रूप बनते हैं। .
कालसंयोग निष्पन्न नाम से किं तं कालसंजोगे?
कालसंजोगे - सुसमसुसमाए १ सुसमाए २ सुसमदूसमाए ३ दूसमसुसमाए ४ दूसमाए ५ दूसमदूसमाए ६। अहवा - पावसए १ वासारत्तए २ सरदए ३ हेमंतए ४ वसंतए ५ गिम्हए ६। सेत्तं कालसंजोगे। .
शब्दार्थ - पावसए - पावस काल में-वर्षा काल में, वासारत्तए - वर्षा ऋत्विक-वर्षा ऋतु में उत्पन्न, सरदए - शारदिक-शरद ऋतु में उत्पन्न, हेमंतए - हैमंतिक-हेमंत ऋतु में उत्पन्न, गिम्हए - ग्रैष्मिक-ग्रीष्म ऋतु में उत्पन्न।
भावार्थ - कालसंयोग निष्पन्न नाम का क्या स्वरूप है?
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