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________________ २२४ अनुयोगद्वार सूत्र मातृवाहक (माइवाहए) - 'मातृवाहक' उसे कहा जाता है जो माता को कंधों पर वहन करे, उठाए। जो वैसा नहीं होता उसे अमातृवाहक (अमाइवाहए) कहा जाता है। किन्तु भाषा में विकलेन्द्रिय (द्वीन्द्रिय) जीव विशेष की मातृवाहक संज्ञा है, जो व्युत्पत्ति लभ्यानुसार माता को कंधों पर वहन नहीं करता। ____ बीजवपक (बीयवावए) - जो बीज को बोता है, उसे बीजवपक कहा जाता है तथा जो बीज का वपन नहीं करता, वह अबीजवपक (अबीयवावए) है। किन्तु (द्वीन्द्रिय) जीव विशेष को बीजवपक कहा जाता है, जहाँ व्युत्पत्ति की संगति नहीं है। इन्द्रगोप (इंदगोवए) - इन्द्रगोप का अर्थ इन्द्र की गाय का पालक है। किन्तु वर्षा का लाल रंग का कोमल कीट (त्रीन्द्रिय जीव) विशेष इन्द्रगोप कहा जाता है। यह इन्द्र की गायों का पालक नहीं होता। यह नोगौण का स्वरूप है। ३. आदानपद निष्पन्न नाम से किं तं आयाणपएणं? आयाणपएणं-(धम्मोमंगलं चूलिया) आवंती, चाउरंगिजं, असंखयं, अहातत्थिजं, अद्दइज, जण्णइजं. पुरिसइजं (उसुयारिज), एलइजं, वीरियं, धम्मो, मग्गो, समोसरणं, जमईयं । सेत्तं आयाणपएणं। भावार्थ - आदानपद का क्या तात्पर्य है? । आदानपद से आवंती, चातुरंगिजं, असंखयं, अहातत्थिज्जं, अद्दइजं, जण्णइज्जं, पुरिसइज्ज (उसुकारिज), वीरियं, धम्म, मग्ग, समोसरणं, जमईयं गृहीत है। विवेचन - आदान का अर्थ ग्रहण करना या लेना है। आगमों के कतिपय अध्ययनों के नामकरण में एक विशेष पद्धति या शैली प्राप्त होती है। किसी भी आगम अध्ययन के प्रारम्भ में जिन पदों का उल्लेख होता है अर्थात् जिनसे वह आगम प्रारम्भ होता है, उन पदों के आधार पर उस अध्ययन का नाम रखा जाना आदान निक्षेप नाम है। इसका अभिप्राय यह है कि उस अध्ययन के महत्त्वपूर्ण विषय का उसके शीर्षक से ही संसूचन हो जाता है, जिससे पाठकों के मन में विशेष जिज्ञासा जागृत होती है। इस सूत्र में दिये गए उदाहरण इसी कोटि के हैं, जिनका अभिप्राय निम्नांकित है - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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