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________________ नवनाम - करुण रस २१४ भावार्थ - गाथाएँ - रूप, अवस्था, वेश, भाषा आदि की विपरीतता एवं विडम्बना से हास्यरस उत्पन्न होता है। उससे अनन्य, असाधारण हर्ष की अनुभूति होती है तथा अट्टहास आदि उसके पहचान चिह्न हैं॥१॥ __ यथा - प्रातःकाल सोकर उठे देवर को देखकर जिसके मुख पर काजल की काली रेखाएँ थी, षोडशी युवती (भाभी) जिसका मध्य भाग स्तनों के भार से झुका था, ही-ही कर हंस पड़ी॥२॥ ८. करुण रस पियविप्पओगबंध-,वहवाहिविणिवायसंभमुप्पण्णो। सोइयविलवियपम्हाण-, रुण्णलिंगो रसो करुणो॥१॥ करुणो रसो जहा - पज्झायकिलामिययं, बाहागयपप्पुयच्छियं बहुसो। - तस्स विओगे पुत्तिय!, दुब्बलयं ते मुहं जायं ॥२॥ - शब्दार्थ - पियविप्पओग - प्रियजन का विरह, वह - वध-मृत्यु, बाहि - व्याधि, विणिवाय - विनिपात-संकट, संभमुप्पण्णो - शत्रु आदि के भय से उत्पन्न, सोइय - शोक, विलविय - विलाप, पम्हाण - प्रम्लान-अत्यधिक म्लानता, रुण्णलिंगो - रुदन लक्षण, पज्झायकिलामिययं - अत्यन्त चिन्ताग्रस्त एवं क्लान्त, बाहागयपप्पुयच्छियं - वाष्पागत प्रप्लुताक्षिकम् - आँसुओं के आने (रोने) से नयन (आँखे) व्याप्त (भरे) रहते हैं, बहुसो - अत्यधिक, दुब्बलयं - दुर्बल, जायं - हो गया है। भावार्थ - करुण रस का उदाहरण इस प्रकार है - (किसी विरह पीड़िता स्त्री के प्रति अभिभावक की उक्ति) - प्रिय का वियोग, बंध, वध, व्याधि, संकटजनित व्याकुलता से जो उत्पन्न होता है, शोक, विलाप, चिन्ता, रुदन जिसका लक्षण है, वह करुण रस है॥१॥ हे पुत्री! अपने प्रियतम के विरह से उसकी बार-बार चिन्ता से क्लात बने हुए, मुाए हुए तथा पीड़ा के कारण आँखों से झरते हुए आँसुओं को तुम पोंछ रही हो, ऐसा तुम्हारा मुख बहुत दुर्बल हो गया है॥२॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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