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अनुयोगद्वार सूत्र
५. वीडनक रस विणओवयारगुज्झगुरु-दारमेरावइक्कमुप्पणो। वेलणओ णाम रसो, लज्जा संकाकरणलिंगो॥१॥ वेलणओ रसो जहा - किं लोइयकरणीओ, लज्जणीयतरं ति लज्जयामु त्ति। वारिजम्मि गुरुयणो, परिवंदइ जं बहुप्पोत्तं॥२॥
शब्दार्थ - विणओवयार - विनय करने योग्य माता-पिता, गुरुजन आदि के (समक्ष), गुज्झ - गुह्य-गोपनीय-छिपाने योग्य, गुरुदार - गुरु पत्नी, मेरावइक्कमुप्पण्णो - मर्यादा के अतिक्रमण या उल्लंघन से उत्पन्न, वेलणओ - वीडनक, लज्जासंकाकरणलिंगो - लज्जा तथा संकोच लक्षण रूप, लोइयकरणीओ - लौकिक करणीय, लज्जणीयतरं - अत्यन्त लज्जास्पद, लज्जयामु - लज्जायुक्त, होमो - होती है, वारिज्जम्मि - वर्जनीय, गुरुयणो - गुरुजन-सासससुर आदि पूज्यजन , परिवंदइ - प्रशंसा करते हैं, जं - जो, बहुप्पोत्तं - वधू का वस्त्र।
भावार्थ - विनय करने योग्य गुरुजनों के गुप्त रहस्य का प्रकाशन या उनके समक्ष अपने गुप्त रहस्य का प्रकटीकरण, गुरुपत्नी आदि के साथ मर्यादा का अतिक्रमण वीडनक नामक रस है। लज्जा तथा शंका या संकोच इसकी पहचान है। इसका उदाहरण इस प्रकार है - ___एक नव परिणीता वधू कहती है कि सास-ससुर आदि गुरुजन नववधू के सुहागरात के (रक्त रंजित) वस्त्र का, जो वर्जनीय है, प्रदर्शन कर प्रशंसा करते हैं (यह वधू अक्षतयोनिअकृतसंगमा है) यह लोकव्यवहार अत्यंत लज्जास्पद है। हम नववधुएँ इसे देखकर अत्यन्त लज्जित होती हैं।
विवेचन - वीडनकरस क्या होता है? इस तथ्य को समझाने के लिए शास्त्रकार ने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। उदाहरण में शास्त्रकार ने एक देश की कुलाचार परम्परा का उल्लेख किया है। किसी देश में यह कुलाचार है कि कोई युवक विवाह करके नववधू को घर लेकर आता है और प्रथम सुहागरात को अपनी नवविवाहिता पत्नी के साथ सहवास करता है। उस संगम से यदि नवोढ़ा का अधोवस्त्र रक्तरंजित हो जाता है तो उसे देखकर सारे परिवार में प्रसन्नता की लहर दौड़ जाती है। इससे सारे पारिवारिकजन यह समझ लेते हैं कि नववधू सच्चरित्रा है, अकृतसंगमा है, विवाह से पूर्व यह अक्षतयोनि रही है, इसने किसी भी पुरुष से
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