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अनुयोगद्वार सूत्र
ज़िणवयणेण - जिनेन्द्र प्रभु के वचन से, अत्था - अर्थ-पदार्थ, तिकालजुत्ता - त्रिकालयुक्तवर्तमान, भूत तथा भविष्य - तीनों कालों से संबंधित, मुणिज्जति - जाने जाते हैं।
भावार्थ - जिसका कभी पहले अनुभव नहीं हुआ है अथवा अनुभव हुआ है, वैसा विस्मय या आश्चर्य जो उत्पन्न करता है, वह अद्भुत रस होता है। वह हर्ष या विषाद उत्पन्न करता है। उसका यह लक्षण है॥१॥
__ अद्भुत रस का उदाहरण इस प्रकार है - इस जीवलोक में - संसार में इससे अद्भुतआश्चर्यकारी और क्या है कि जिनेश्वर देव के वचन से तीनों कालों से संबंधित सभी पदार्थों का ज्ञान हो जाता है॥२॥
विवेचन - अद्भुत रस का यहाँ जो उदाहरण दिया गया है, वह धार्मिक या तात्त्विक है। संसार में भिन्न-भिन्न प्रकार के विविध पदार्थ हैं, उन सब को भली-भाँति जान पाना कदापि संभव नहीं है, चाहे कोई कितना ही प्रयास करे किन्तु तीर्थंकर देव की वाणी का यह अद्भुत प्रभाव है कि उस द्वारा सभी पदार्थ जाने जाते हैं क्योंकि वे ज्ञानावरणीय आदि कर्मों के सर्वथा क्षीण होने से सर्वज्ञ, सर्वदर्शी होते हैं। ___संसार में भी ऐसे अनेक दृश्य, कार्य दिखलाई पड़ते हैं, जिनकी विचित्र संरचना को देखकर मनुष्य आश्चर्य में पड़ जाता है। कई अद्भुत दृश्य, कार्य या रचनाएँ ऐसी होती है, जो दर्शकों को प्रिय लगती हैं। वे ऐसा आश्चर्य उत्पन्न करती हैं, जिससे मन में हर्ष होता है। कई ऐसे दृश्य, पदार्थ या भाव होते हैं जो मन के प्रतिकूल होते हैं, अप्रिय होते हैं। अतएव वे मन में विषाद या पीड़ा उत्पन्न करते हैं, क्योंकि मानव का यह स्वभाव है कि वह सदा प्रियता या मनोज्ञता को चाहता है, उससे हर्षित, प्रसन्न होता है। वह अप्रियता या प्रतिकूलता को नहीं चाहता। वैसी स्थिति उसके मन के लिए कष्टोत्पादक होती है।
४.रौद्र रस भयजणणरूवसइंधयार-, चिंता कहासमुप्पण्णो। संमोहसंभमविसाय, मरणलिंगो रसो रोद्दो॥१॥ रोद्दो रसो जहा - भिउडिविडंबियमुहो, संदट्ठोट्ट इय रुहिरमाकिण्णो। हणसि पसुं असुरणिभो, भीमरसिय अइरोद्द! रोद्दोऽसि ॥२॥
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