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नवनाम - अद्भुत रस
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२. श्रृंगार रस सिंगारो णाम रसो, रइसंजोगाभिलाससंजणणो। मंडणविलासविब्बोय-, हासलीलारमणलिंगो॥१॥ सिंगारो रसो जहा - महरविलाससललियं, हियउम्मायणकरं जुवाणाणं। सामा सदुद्दाम, दाएई मेहलादामं॥२॥
शब्दार्थ - सिंगारो - श्रृंगार, रइसंजोगाभिलास-संजणणो - रति एवं संयोग की अभिलाषा उत्पन्न करने वाला, मंडण - आभरण-सज्जा, विलास - कामोत्तेजक कटाक्ष आदि की चेष्टायें, विब्बोय - विकारोत्पादक दैहिक प्रवृत्तियाँ, हास - हास्य, लीला - गति या चाल आदि की सुन्दरता, रमण - क्रीड़ा, लिंगो - चिह्न या लक्षण।। - भावार्थ - जो रति-प्रेम और संयोग की अभिलाषा उत्पन्न करता है, जिसमें अलंकरण सज्जा, विलास कामोत्पादक क्रिया कलाप, हास्य, मोहक गति आदि की चेष्टा तथा रमण काम क्रीड़ा का सन्निवेश होता है, वह श्रृंगार रस है॥१,२॥
. . . ३. अद्भुत रस विम्हयकरो अपुव्वो, अणुभूयपुव्वो य जो रसो होइ। हरिसविसाउम्पत्ति-, लक्खणो अन्भुओ णाम॥१॥ अन्भुओ रसो जहा - अन्भुयतरमिह एत्तो, अण्णं किं अस्थि जीवलोगम्मि? . जं जिणवयणे अत्था, तिकालजुत्ता मुणिज्जंति॥२॥
शब्दार्थ - विम्हयकरो - विस्मयोत्पादक-आश्चर्यजनक, अपुव्वो - अपूर्व-जैसा पहले कभी अनुभूत नहीं हुआ, अणुभूयपुव्वो - भूतपूर्व-पहले अनुभव में आया हुआ, हरिसविसाउप्पत्तिलक्खणो - हर्ष तथा विषाद-दुःख को उत्पन्न करना जिसका लक्षण है। अन्भुओ - अद्भुत, अब्भुयतरं - अद्भुततर-अत्यधिक आश्चर्यजनक, इह - इस संसार में, एत्तो - इससे, अण्णं - अन्य या दूसरा, अत्थि - है, जीवलोगम्मि - जीवलोक में-संसार में,
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