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अनुयोगद्वार सूत्र
उरकंठसिरविसद्धं च, गिज्जंते मउयरिभियपयबद्धं। समतालपडुक्खेवं, सत्तस्सरसीभरं गीयं ॥७॥ अक्खरसमं पयसमंतालसमं लयसमं च गेहसमं। णीससिओससियसमं संचारसमं सरा सत्त॥८॥ णिदोसं सारमंतं च हेउजुत्तमलंकियं। उवणीयं सोवयारं च, मियं महरमेव य॥६॥
शब्दार्थ - पुण्णं - पूर्ण, रत्तं - रक्त - अनुरक्तता - तन्मयता, अलंकियं - अलंकृत, वत्तं - व्यक्त, अविघुटुं - विकृत घोष या ध्वनि, गिजंते - गाया जाता है, रिभिय - स्वर । युक्त, समताल पडुक्खेवं - गीत, ताल - वाद्य ध्वनि एवं नर्तक. के पादक्षेप की संगति, सत्तस्सरसीभरं - सातों स्वरों का वर्षा की फुहार की तरह प्रस्फुटन, गेहसमं - वीणा आदि वाद्य यंत्रों द्वारा गृहीत ध्वनि के अनुरूप, णीससिओससियसमं - संगान में निःश्वास और उच्छ्वास के क्रम का समुचित सामंजस्य, संचारसमं - तन्तुवाद्यों के संचार के अनुरूप गायन, णिद्दोसं - निर्दोष - दोष रहित, सारमंतं - सारयुक्त - विशिष्ट भाव युक्त, हेउजुत्तमलंकियं - हेतु युक्ति अलंकृत, उवणीय - उपनीत - उपसंहार युक्त, सोवयारं - उपचार या अविरोध युक्त, मियं- मित - परिमित पद एवं अक्षर युक्त।
भावार्थ - गीत के आठ गुण माने गए हैं - १. पूर्णता - गीत गत स्वरों के आरोह - अवरोह आदि समस्त गीत विद्याओं का सम्यक् निर्वाह। २. रत्त - गेय राग में तन्मयता। ३. अलंकृत - तदनुकूल स्वरों का सुंदर संयोजन। ४. व्यक्त - गीतगत पदों के स्वरों एवं व्यंजनों का स्पष्ट उच्चारण। ५. अविघुष्ट - विकृत या विश्रृंखलित ध्वनिक्रम का वर्जन। ६. मधुर - कर्णप्रिय स्वर द्वारा प्रस्तुतीकरण। ७. सम - सुर, ताल एवं लय का सुंदर सामंजस्य। ८. सुललित - आलाप लालित्य॥६॥ गीत के अन्य गुण इस प्रकार हैं - १. उरोविशुद्ध - वक्ष स्थल से।
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