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गीत के आठ गुण
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गीतगायक की कुशलता छद्दोसे अट्ठगुणे, तिण्णि य वित्ताइं दो य भणिईओ। जो णाही सो गाहिइ, सुसिक्खिओ रंगमज्झम्मि॥४॥
शब्दार्थ - अट्ठगुणे - आठ गुण, भणिइओ - उक्ति प्रकार, वित्ताई - वृत्त, णाही - विज्ञ, गाहिइ - गाता है, सुसिक्खिओ - भली भांति शिक्षित, रंगमज्झम्मि - रंगमंच पर।
भावार्थ - (जिसने) गीत के छह दोषों, आठ गुणों, तीन वृत्तों तथा दो उक्ति प्रकारों को भलीभांति जाना है - यथावत् शिक्षण प्राप्त किया है, वह रंगमंच पर गीत प्रस्तुति कर सकता है॥४॥
गीत के छह दोष भीयं दुयं उप्पिच्छं, उत्तालं च कमसो मुणेयव्वं । कागस्सरमणुणासं, छद्दोसा होंति गेयस्स॥५॥
शब्दार्थ - भीयं - भीतियुक्त, दुयं - द्रुत, उप्पिच्छं - उप्पिच्छ - गान के बीच श्वास टूटना, उत्तालं - ताल के विपरीत, कमसो - क्रमशः, मुणेयव्वं - ज्ञातव्य, कागस्सरं - कौवे जैसा कर्कश स्वर, अणुणासं - अनुनासिक - नासिका का अधिक - अनपेक्षित उपयोग।
भावार्थ - गीत के छह दोष निम्नांकित हैं - १. भय (झिझक) या घबराहट के साथ गाना, २. अनावश्यक तीव्रता, ३. उप्पिच्छ - गान के मध्य श्वास टूटना, ४. ताल के विपरीत जाना, ५. कौवे की तरह कर्कश स्वर,
६ अनावश्यक नासिका का प्रयोग- अननुनासिक पदों का भी अनुनासिक (नासिका से) की तरह उच्चारण ॥५॥
गीत के आठ गुण पुण्णं रत्तं च अलंकियं च वत्तं च तहेवमविघुटुं। महुरं समं सुललियं, अट्ठगुणा होति गेयस्स॥६॥
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