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अनुयोगद्वार सूत्र
शोक, दुःख या रुदन ही वह स्थिति है, जो हृदय को भाव विह्वल. बना देती है। सुखसुविधा या अनुकूलता से यह काव्य घटित होता है। ___ संस्कृत वाङ्मय में प्रसिद्ध कवि भवभूति हुए हैं, जिन्होंने 'उत्तर रामचरितम्' की रचना की। जिसमें राम द्वारा निर्वासित सीता के जीवन की करुण कथा है। भवभूति ने स्वयं इसके लिए लिखा है - 'अपि ग्रावा रोदिति, दलति वज्रस्यापि हृदयम्'-जिसे सुनकर शीला भी रोने लग जाय, वज्र का हृदय भी विदीर्ण हो जाय। उन्होंने निम्नांकित श्लोक में इस बात को ओर भी स्पष्ट किया है -
एको रसः करुण एव निमित्त भेदाद, भिन्नः पृथक् पृथगिवानयते निवर्तान। आवर्तबुबुद्तरंगमयान् विकारान्, अम्भो यथा सलिलमेव हि तत्समस्तम् ॥
वस्तुतः रस करुण ही है और तो सब उसके भिन्न-भिन्न विवर्त हैं - उसी से समुत्पन्न या (उसके) अंश रूप हैं। आवर्त, बुद्बुद् तरंगें - ये सभी भिन्न-भिन्न प्रतीत होते हैं किन्तु हैं तो सब जल ही।
बाल्मीकी और भवभूति का निरूपण आगम के इस पद का सर्वथा समर्थन करते हैं क्योंकि रुदन का प्रसव शोक है। शोक करुण रस का स्थायी भाव है।
पाश्चात्य जगत् में अरस्तू नामक बहुत बड़े विद्वान् हुए (३८४ ई० पू०) जो सिकन्दर के गुरु थे। उन्होंने अनेक विषयों पर महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की, जिसमें काव्य शास्त्र (Poetics) भी है। इसमें उन्होंने अत्यंत प्रसिद्ध विरेचन सिद्धान्त (Cathersis) की विवेचना की, जो शोक या त्रासदी पर आधारित है। पाश्चात्य काव्य सिद्धान्तों पर उनके इस सिद्धान्त का बहुत प्रभाव पड़ा।
शेक्सपीयर के समस्त नाटक त्रासदी या दुःख पर आधारित हैं। . वास्तव में दुःख या शोक ही वह मनःस्थिति है, जो कविता के लिए अपेक्षित ‘साधारणीकरण' (Generalisation) का भाव अभ्युदित होता है।
इससे यह सिद्ध है कि आगमकार ने काव्य के यथार्थ, मौलिक उत्स - उत्पत्ति स्थल का रुदन के रूप में यथार्थ अंकन किया है।
* उत्तररामचरितम् ३. ४७
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