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________________ अजीवनिश्रित सात स्वर शब्दार्थ - मुयंगो - मृदंग, गोमुही - गोमुखी - वाद्य विशेष, संखो शंख, झल्लरीचउच्चरणपइट्ठाणा चार चरणों पर अवस्थित - गोधिका वाद्य विशेष, गोहिया झालर, गोधिका, आडंबरो - ढोल, महाभेरी - बड़ा नगारा, सरलक्खणा भावार्थ - अजीवनिश्रित सात स्वर इस प्रकार प्रज्ञप्त हुए हैं। - - Jain Education International गाथाएँ - मृदंग में षड्ज स्वर, गोमुखी संज्ञक वाद्य से ऋषभ स्वर, शंख से गांधार स्वर, झालर से मध्यम स्वर, चरणचतुष्टयाश्रित गोधिका संज्ञक वाद्य से पंचम स्वर, ढोल से धैवत स्वर तथा महाभेरी से सप्तम निषाद स्वर निकलता है ॥१-२॥ विवेचन - स्वरों की निष्पत्ति जीवों- सचेतन प्राणियों से होती ही है, जिनका सूत्रकार ने मयूर आदि के रूप में विवेचन किया है। इन विभिन्न पशु-पक्षियों के रवों, ध्वनियों का स्वरों के उदाहरणों के रूप में उल्लेख हुआ है, उसका यह अभिप्राय है कि उनकी बोली सहजतया सद्रूप होती है क्योंकि उनका दैहिक गठन, ध्वनि का उद्गम, ऊर्ध्वगमन तथा ध्वनियंत्र में समागम का एक ऐसा विशेष ढांचा होता है, जिससे सहजतया उक्त स्वर निःसृत होते हैं। निकलते हैं। जैसे कोयल की बसन्त ऋतु में पंचम स्वर में निकलती हुई ध्वनि, जिसे कूक कहा जाता है, स्वाभाविक है। - मनुष्य के देहगत वाणी या ध्वनि के उद्गम स्थान, उच्चारण स्थान (Vochal Chord ) ऐसे . बने होते हैं कि अभ्यास द्वारा सातों ही स्वरों का निस्सारण, उच्चारण किया जा सकता है, जिसके लिए लम्बी साधना की आवश्यकता होती है। भिन्न-भिन्न वाद्य यंत्र जो धातु, चर्म आदि से बने होते हैं, मानवीय प्रयोग द्वारा भिन्न-भिन्न स्वरों को निकालते हैं। अर्थात् वहाँ मानवीय प्रयत्न अपेक्षित हैं किन्तु उनसे निकलने वाले स्वर अपनी-अपनी संरचना के अनुसार वैविध्यपूर्ण होते हैं। यही कारण है कि मृदंग, पटह और महाभेरी यद्यपि तीनों चर्मनद्ध वाद्य हैं किन्तु तीनों में रचना- - वैविध्य से निकलने वाले स्वरों में भी भिन्नता होती है । - - स्वर लक्षण । For Personal & Private Use Only १६५ संगीतकार जब स्वरों का उच्चारण या संगान करता है, तो अपने द्वारा प्रयुज्यमान स्वरों के अनुरूप वाद्य ध्वनियों का सहयोग लेता है। अर्थात् लयात्मक एवं तालात्मक वाद्यों के साथ उसका स्वर संगान प्रस्फुटित होता है । www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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