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________________ अनुयोगद्वार सूत्र भावार्थ - इन सात स्वरों के सात उच्चारण स्थान हैं, जो इस प्रकार कहे गए हैं गाथाएं - षड्ज का जीभ का आगे का भाग, ऋषभ का वक्षस्थल, गांधार का कंठ, मध्यम का जिह्वा का मध्य भाग, पंचम का नासिका, धैवत का दन्त और ओष्ठ का संयोग तथा निषाद का वेग से तनी हुई भृकुटी के साथ मूर्धा - ये उच्चारण स्थान कहे गए हैं ।। १-२ ॥ जीवनिश्रित सात स्वर १६४ सत्तसरा जीवणिस्सिया पण्णत्ता । तंजहा - गाहा - सज्जं खड़े मऊरो, कुक्कुडो रिसभं सरं । हंसो रवइ गंधारं, मज्झिमं च गवेलगा ॥ १ ॥ अह कुसुमसंभवे काले, कोइला पंचमं सरं । छटुं च सारसा कुंचा, सायं सत्तमं गओ ॥ २ ॥ शब्दार्थ - जीवणिस्सिया - जीवनिश्रित - सचेतन प्राणी द्वारा उच्चारित, मऊरो मयूर, कुक्कुडो - मुर्गा, रवइ शब्द करता है, उच्चारित करता है, गवेलगा - गवेलक भेड़, अह अथ, कुसुमसंभवे काले - बसंत ऋतु में, कोइला - कोकिला, सारसा सारस, कुंचा - क्रौञ्च, गओ - गज - हाथी । भावार्थ - जीवनिश्रित सात स्वर इस प्रकार परिज्ञापित हुए हैं - गाथाएं मयूर षड्ज स्वर में, मुर्गा ऋषभ स्वर में, हंस गंधार स्वर में, स्वर में, कोयल - बसंत ऋतु में पंचम स्वर में, सारस तथा क्रौञ्च पक्षी छठे तथा हाथी सप्तम - निषाद स्वर में बोलता है ॥१-२॥ अजीवनिश्रित सात स्वर - Jain Education International - सत्तसरा अजीवणिस्सिया पण्णत्ता । तंजहा - सज्जं वइ मुयंगो, गोमुही रिसहं सरं । संखो व गंधारं, मज्झिमं पुण झल्लरी ॥१॥ चउच्चरणपइट्ठाणा, गोहिया पंचमं सरं । आडंबरो रेवइयं, महाभेरी य सत्तमं ॥ २ ॥ - For Personal & Private Use Only भेड़ मध्यम धैवत स्वर में www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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