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________________ सप्तस्वरों के उच्चारण स्थान १६३ मनुष्य गति, औपशमिक भाव में औपशमिक चारित्र, क्षायिक भाव में - क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायोपशमिक भाव में इन्द्रियाँ, पारिणामिक भाव में - जीवत्व। इस प्रकार यह भंग पाता है। उपर्युक्त प्रकार से जीवों में प्राप्त छह भंगों का कारण सहित स्पष्टीकरण किया गया है। (१२८) सप्तनाम से किं तं सत्तणामे? सत्तणामे सत्तसरा पण्णत्ता। तंजहा - गाहा - सज्जे रिसहे गंधारे, मज्झिमे पंचमे सरे। धे(रे)वए चेव णेसाए, सरा सत्त वियाहिया॥१॥ शब्दार्थ - सत्तणामे - सात नाम, सत्तसरा - सात स्वर। भावार्थ - सप्तनाम का क्या स्वरूप है? सप्तनाम में सात स्वरों का प्रतिपादन हुआ है, जिनके नाम इस प्रकार हैं - गाथा - १. षड्ज २. ऋषभ ३. गांधार ४. मध्यम ५.. पंचम ६. धैवत एवं ७. निषाद॥१॥ सप्तस्वरों के उच्चारण स्थान एएसि णं सत्तण्हं सराणं सत्त सरट्ठाणा पण्णत्ता। तंजहा - गाहाओ - सजं च अग्गजीहाए, उरेण रिसह सरं। कठुग्गएण गंधारं, मज्झजीहाए मज्झिमं॥१॥ णासाए पंचमं बूया, दंतोटेण य धेवयं। भमुहक्खेवेण णेसायं, सरट्ठाणा वियाहिया॥२॥ शब्दार्थ - सरट्ठाणा - स्वरस्थान, अग्गजीहाए - जीभ के आगे का भाग, उरेण - हृदय से, सरं - स्वर, कठुग्गएण - कंठस्थित द्वारा, मज्झजीहाए - जीभ के बीच से, बूयाब्रूयात-कथन करना चाहिए, दंतोटेण - दंतोष्ठ द्वारा - दाँत एवं ओठ से, भमुहक्खेवेण - तनी हुई भृकुटी एवं मूर्धा द्वारा, णेसायं - निषाद से, वियाहिया - कहे गए हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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