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________________ १६२ अनुयोगद्वार सूत्र औदयिक में मनुष्य गति, औपशमिक में उपशांत कषाय, क्षायिक भाव में क्षायिक सम्यक्त्व क्षायोपशमिक में इन्द्रियाँ तथा पारिणामिक भाव में जीवत्व का ग्रहण है। यह औदयिक-औपशमिकक्षायिक-क्षायोपशमिक एवं पारिणामिक भावों के संयोग से निष्पन्न भंग का स्वरूप है। यह सान्निपातिक भाव का स्वरूप है। इस प्रकार छह नाम का विवेचन परिसमाप्त होता है। विवेचन - सान्निपातिक भाव के वर्णन में जो २६ भंग बताये गये हैं उनमें से २० भंग तो शून्य होते हैं। छह भंग घटित होते हैं अर्थात् वे ६ भंग जीवों में पाये जाते हैं। उनका वर्णन इस प्रकार हैं - १. द्विक संयोगी नववां भंग - 'क्षायिक-पारिणामिक' - यह भंग सिद्ध भगवान् में पाया जाता है। क्षायिक सम्यक्त्व और पारिणामिक भाव में जीवत्व इस प्रकार यह भंग होता है। २. त्रिक संयोगी पांचवां भंग - 'औदयिक-क्षायिक-पारिणामिक' यह भंग तेरहवें चौदहवें गुणस्थान वाले केवलियों में पाया जाता है। औदयिक-मनुष्य गति, क्षायिक सम्यक्त्व एवं चारित्र, पारिणामिक - जीवत्व इस प्रकार यह भंग पाता है। ३. त्रिक संयोगी छट्ठा भंग - 'औदयिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिक' - 'यह भंग चारों गति के जीवों में होता है। औदयिक भाव में-नारक आदि गतियाँ, क्षायोपशमिक भाव मेंइन्द्रियाँ, पारिणामिक भाव में-जीवत्व। इस प्रकार यह भंग पाता है। ' ४. चतुःसंयोगी तीसरा भंग - 'औदयिक-औपशमिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिक'यह भग भी नारक आदि चारों गतियों में पाया जाता है। औदयिक भाव में - नारक आदि चार गतियाँ, औपशमिक भाव में-उपशम सम्यक्त्व (चारों गति के संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवों में सर्वप्रथम उपशम सम्यक्त्व की प्राप्ति होने से तथा मनुष्य गति में तो उपशम श्रेणी में भी उपशम सम्यक्त्व होने से) क्षायोपशमिक भाव में-इन्द्रियाँ, पारिणामिक भाव में-जीवत्व। इस प्रकार यह भंग पाता है। ____५. चतुःसंयोगी चौथा भंग - 'औदयिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिक' यह भंग भी चारों गतियों में पाया जाता है। औदयिक भाव में नारक आदि गतियाँ, क्षायिक भाव में क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायोपशमिक भाव में इन्द्रियाँ और पारिणामिक भाव में जीवत्व। इस प्रकार यह भंग पाता है। ६. पंच संयोगी एक भंग - 'औदयिक-औपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिक' यह भंग ग्यारहवें गुणस्थान वाले क्षायिक सम्यक्त्वी जीवों में पाया जाता है। औदयिक भाव में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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