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अनुयोगद्वार सूत्र
सप्तस्वरों के लक्षण, फल एएसि णं सत्तहं सराणं सत्त सरलक्खणा पण्णत्ता। तंजहा - गाहाओ - सजेणं लहई वित्तिं, कयं च ण विणस्सइ।
गावो पुत्ता य मित्ता य, णारीणं होइ वल्लहो॥१॥ रिसहेणं उ एस(पसे)जं, सेणावच्चं धणाणि य। वत्थगंधमलंकारं, इथिओ सयणाणि य॥२॥ .. गंधारे गीयजुत्तिण्णा, वजवित्ती कलाहिया। हवंति कइणो धण्णा, जे अण्णे सत्थपारगा॥३॥ मज्झिमसरमंता उ, हवंति सुहजीविणो। खायई पियई देई, मज्झिमसरमस्सिओ॥४॥ पंचमसरमंता उ, हवंति पुहवीपई।
सूरा संगहकत्तारो, अणेगगणणायगा॥५॥ , रेवयसरमंता उ, हवंति दुहजीविणो। साउणिया* वाउरिया, सोयरिया य मुट्ठिया॥६॥ णिसायसरमंता उ, होंति कलहकारगा।
जंघाचरा* लेहवाहा, हिंडगा भारवाहगा॥७॥ शब्दार्थ - सत्तण्हं - सात का, लहई - लभते - प्राप्त करता है, वित्तिं - वृत्ति - आजीविका, कयं - कृत - किया हुआ प्रयत्न, विणस्सइ - नष्ट होता है, गावो - गायें, पुत्ता - पुत्र, मित्ता - मित्र, णारीणं - स्त्रियों का, होइ - होता है, वल्लहो - वल्लभ - प्रिय, एसजं - ऐश्वर्य, सेणावच्चं - सेनापतित्व, इथिओ - स्त्रियाँ, सयणाणि - उत्तम
* १ पाढंतरं - कुचेला य कुवित्ती य, चोरा चंडालमुट्ठिया। २. पायचारित्ति अट्ठो। शब्दार्थ - कुचेला - गंदे वस्त्रों वाले, कुवित्ती - कुत्सित वृत्ति युक्त।
भावार्थ - (धैवत स्वर वाले व्यक्ति) मैले, कुचैल वस्त्र धारक, कुत्सित वृत्ति युक्त, चोर, चांडाल एवं मौष्टिक होते हैं।
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