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________________ १८८ अनुयोगद्वार सूत्र ____ उत्तर - औदयिक भाव में मनुष्य गति, औपशमिक भाव में उपशांत कषाय तथा क्षायोपशमिक भाव में इन्द्रियाँ गृहीत हैं। इन तीनों का समन्वय औदयिक-औपशमिक-क्षायोपशमिक भाव का स्वरूप है॥२॥ प्रश्न - औदयिक-औपशमिक-पारिणामिक भंग का क्या स्वरूप है? उत्तर - औदयिक भाव में मनुष्य गति, औपशमिक भाव में उपशांत कषाय तथा पारिणामिक भाव में जीवत्व को लिया जाता है। इस प्रकार इन तीनों का समन्वित रूप औदयिक-औपशमिकपारिणामिक भाव का स्वरूप है॥३॥ प्रश्न - औदयिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक भावों के संयोग से होने वाले भंग का क्या स्वरूप है? - उत्तर - औदयिक भाव में मनुष्य गति, क्षायिक भाव में क्षायिक सम्यक्त्व तथा क्षायोपशमिक भाव में इन्द्रियाँ गृहीत हैं। यह इन तीनों के समन्वित रूप औदयिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक भाव का स्वरूप है॥४॥ प्रश्न - औदयिक क्षायिक-पारिणामिक भावों के सम्मिश्रण से होने वाले भंग का क्या स्वरूप है? उत्तर - औदयिक भाव में मनुष्य गति, क्षायिक भाव में क्षायिक सम्यक्त्व तथा पारिणामिक भाव में जीवत्व का ग्रहण है। यह औदयिक-क्षायिक-पारिणामिक भंग का स्वरूप है॥५॥ __प्रश्न - औदयिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिक भावों के समन्वय से निष्पन्न भंग का क्या स्वरूप है? उत्तर - औदयिक भाव में मनुष्य गति, क्षायोपशमिक भाव में इन्द्रियाँ तथा पारिणामिक भाव में जीवत्व का ग्रहण है। यह औदयिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिक भाव निष्पन्न भंग का स्वरूप है॥६॥ प्रश्न - औपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक भावों के समन्वय से समुत्पन्न भंग का क्या स्वरूप है? उत्तर - औपशमिक भाव में उपशांत कषाय, क्षायिक भाव में क्षायिक सम्यक्त्व तथा क्षायोपशमिक भाव में इन्द्रियों का ग्रहण है। यह औपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक भाव निष्पन्न भंग का स्वरूप है॥७॥ प्रश्न - औपशमिक-क्षायिक-पारिणामिक भाव निष्पन्न भंग का कैसा स्वरूप है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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