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________________ १८४ अनुयोगद्वार सूत्र कयरे से णामे उवसमियखओवसमणिप्फण्णे? उवसंता कसाया, खओवसमियाइं इंदियाई, एस णं से णामे उवसमियखओवसमणिप्फण्णे। कयरे से णामे उवसमियपारिणामियणिप्फण्णे? उवसंता कसाया, पारिणामिए जीवे, एस णं से णामे उवसमियपारिणामियणिप्फण्णे। कयरे से णामे खइयखओवसमणिप्फण्णे? खइयं सम्मत्तं, खओवसमियाइं इंदियाई, एस णं से णामे खइय- . खओवसमणिप्फण्णे। कयरे से णामे खइयपारिणामियणिप्फण्णे? खइय सम्मत्तं, पारिणामिए जीवे, एस णं से णामे खइयपारिणामियणिप्फण्णे। . कयरे से णामे खओवसमियपारिणामियणिप्फण्णे? खओवसमियाइं इंदियाई, पारिणामिए जीवे, एस णं से ग्रामे खओवसमियपारिणामियणिप्फण्णे। शब्दार्थ - कयरे - कैसा। भावार्थ - प्रश्न - औदयिक तथा औपशमिक भाव के संयोग से होने वाले भंग का क्या स्वरूप है? उत्तर - औदयिक भाव में मनुष्य गति तथा औपशमिक भाव में उपशांत कषाय को गृहीत किया जाता है। इन दोनों का समन्वित रूप औदयिक-औपशमिक भाव है॥१॥ प्रश्न - औदयिक-क्षायिक के संयोग से होने वाले भाव का क्या स्वरूप है? उत्तर - औदयिक भाव में मनुष्य गति तथा क्षायिक भाव में क्षायिक सम्यक्त्व का ग्रहण होता है। दोनों का समन्वित रूप औदयिक-क्षयनिष्पन्न है॥२॥ प्रश्न - औदयिक एवं क्षायोपशमिक भाव के संयोग से होने वाले भंग का क्या स्वरूप है? उत्तर - औदयिक भाव में मनुष्य गति तथा क्षायोपशमिक भाव में इन्द्रियों का ग्रहण है। इस प्रकार दोनों के सम्मिश्रण से होने वाला औदयिक-क्षायोपशमिक भाव है॥३॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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