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अनुयोगद्वार सूत्र
बौद्ध दर्शन का निरसन हो जाता है। 'उत्पादव्यय-ध्रौव्य युक्तं सत्' - जैन दर्शन द्वारा स्वीकृत यह परिभाषा इसी भाव की द्योतक है। ___द्रव्य में होने वाले परिणमन से जो भाव निष्पन्न होते हैं, उन्हें पारिणामिक कहा जाता है। वे सादि और अनादि के रूप में दो प्रकार के हैं। उदाहरण के रूप में जीर्ण मदिरा, जीर्ण गुड़ आदि का जो उल्लेख किया गया है, उसका आशय यह है कि उसका अभिनव रूप ज्यों-ज्यों नष्ट होता है, जीर्ण रूप त्यों-त्यों बनता रहता है। इस प्रकार जीर्णत्व का सादित्व सिद्ध होता है। इसी प्रकार अन्यान्य उदाहरण भी ज्ञातव्य हैं क्योंकि वे बनते हैं, मिट जाते हैं, मिटने पर जो नए बनते हैं, वे आदि सहित हैं। ___धर्मास्ति, अधर्मास्ति आदि पांच अस्तिकाय, काल, लोक, अलोक, भवसिद्धिक आदि अनादिकालीन हैं, शाश्वत हैं, स्व-स्व रूप में परिणमनशील हैं। मदिरा, गुड़ आदि की तरह जीर्णत्व, अभिनव आदि भाव इनसे उद्भूत नहीं होते, अतः ये अनादिपारिणामिक हैं।
सान्निपातिक भाव से किं तं सण्णिवाइए?
सण्णिवाइए - एएसिं चेव उदइयउवसमियखइयखओवसमियपारिणामियाणं भावाणं दुगसंजोएणं तिगसंजोएणं चउक्कसंजोएणं पंचगसंजोएणं जे णिप्फजंति सव्वे ते सण्णिवाइए णामे। तत्थ णं दस दुयसंजोगा, दस तियसंजोगा पंच चउक्कसंजोगा, एगे पंचकसंजोगे।
कठिन शब्दार्थ - दुगसंजोएणं - दो का संयोग, णिप्फजंति - निष्पन्न होते हैं, एक्के- एक। भावार्थ - सान्निपातिक भाव का कैसा स्वरूप है?
औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक एवं पारिणामिक इन पांचों में से दो के संयोग, तीन के संयोग, चार के संयोग एवं पांच के संयोग से जिन भावों की निष्पत्ति होती है, वे सान्निपातिक हैं।
उनमें से दो के संयोग से दस, तीन के संयोग से दस, चार के संयोग से पांच तथा पांच के संयोग से यह एक ही भंग वाला भाव निष्पन्न होता है।
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