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पारिणामिक भाव दो प्रकार का बतलाया गया है। १. सादिपारिणामिक एवं २. अनादिपारिणामिक ।
सादिपारिणामिक भाव कितने प्रकार का है?
सादिपारिणामिक भाव के (निम्नांकित रूप में) अनेक प्रकार हैं
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पारिणामिक भाव
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गाथा गंधर्वनगर हैं ॥१॥
( इनके साथ - साथ) उल्कापात, दिग्दाह, मेघगर्जन, विद्युत्, निर्घात, यूपक, यक्षादीप्त, धूमिका, महिका, रजउद्घात, चन्द्रग्रहण, सूर्य ग्रहण, चन्द्र परिवेश, सूर्यपरिवेश, प्रतिचन्द्र, प्रतिसूर्य, इन्द्रधनुष, जलमत्स्य इन्द्र धनुष के खण्ड, कपिहास्य, अमोघ, भरतादि क्षेत्र, हिमवान् आदि पर्वत, ग्राम, नगर, गृह, पर्वत, पाताल, भवन, नरक रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमः प्रभा, तमस्तमः प्रभा, सौधर्म यावत् अच्युत, ग्रैवेयक, अनुत्तरोपपातिक, ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी, परमाणु पुद्गल, द्विप्रदेशिक स्कन्ध यावत् अनंतप्रदेशिक स्कन्ध आदि सादिपारिणामिक भाव हैं।
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जीर्णसुरा, जीर्णगुड़, जीर्णघृत, जीर्णचावल, अभ्र, अभ्रवृक्ष, संध्या,
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से किं तं अणाइपारिणामिए ?
अणाइपारिणामिए-धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाएं, आगासत्थिकाए, जीवत्थिकाए, पुग्गलत्थिकाए, अद्धासमए, लोए, अलोए, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया । सेत्तं अणाइपारिणामिए । सेत्तं पारिणामिए ।
भावार्थ - अनादिपारिणामिक भाव कैसा है?
धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, काल, लोक, अलोक, भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक- ये अनादिपारिणामिक हैं ।
यह पारिणामिक का स्वरूप है।
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विवेचन . 'परिणमते इति परिणामः' जो क्षण प्रतिक्षण परिणमित, परिणत होता है, अवस्थांतर प्राप्त करता है, उसे परिणाम कहा जाता है। जैन दर्शन के अनुसार द्रव्य मूलतः ध्रुव या अविनश्वर है । किन्तु उसमें एक अवस्था का नाश तथा दूसरी अवस्था की उत्पत्ति होती रहती है। इसलिए उसे एकान्ततः नित्य नहीं कहा जा सकता। इसी कारण जैन दर्शन परिणामनित्यत्ववादी है। इससे एकांतनित्यत्ववादी वेदांत और एकांत अनित्यत्ववादी या क्षणिकवादी
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