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अनुयोगद्वार सूत्र
परिहारविशुद्धि लब्धि, सूक्ष्म सांपरायिकलब्धि, चारित्राचारित्रलब्धि, क्षायोपशमिकी दान-लाभ- . भोग-उपभोगलब्धि, क्षायोपशमिकी वीर्यलब्धि, पंडित वीर्य लब्धि, बाल वीर्य लब्धि, बाल पंडित वीर्य लब्धि, क्षायोपशमिकी श्रोत्रेन्द्रिय लब्धि यावत् क्षायोपशमिकी स्पर्शनेन्द्रिय लब्धि, क्षायोपशमिकी आचारांगधर, सूत्रकृतांगधर, स्थानांगधर, समवायांगधर, व्याख्याप्रज्ञप्तिधर, ज्ञाताधर्मकथांगधर, उपासकदशांगधर, अन्तकृद्दशांगधर, अनुत्तरोपपातिकदशांगधर, प्रश्नव्याकरणधर, क्षायोपशमिक विपाकश्रुतधर, क्षायोपशमिक दृष्टिवादधर, क्षायोपशमिक नवपूर्वधर यावत् चौदह पूर्वधर, क्षायोपशमिक गणी, क्षायोपशमिक वाचक। ये सब क्षयोपशम निष्पन्न भाव हैं।
यह क्षायोपशमिक भाव का निरूपण है।
विवेचन - जैन दर्शन में कर्मवाद का जैसा सूक्ष्म, तलस्पर्शी एवं गंभीर विवेचन हुआ है, वह वास्तव में विलक्षण है। भगवती, प्रज्ञापना आदि सूत्रों तथा षट्खण्डागम एवं उन पर वीरसेनाचार्य रचित धवलाटीका में विभिन्न स्थलों पर जो कर्म सिद्धान्त का अतीव सूक्ष्म विश्लेषण हुआ है, वह प्रत्येक तत्त्व जिज्ञासु के लिए पठनीय एवं मननीय है। जीवन का जो भी स्वरूप है, उसके पीछे कर्मों की ऐसी परम्परा या श्रृंखला जुड़ी है, जिसके परिणाम स्वरूप उन्नतिअवनति, उत्थान-पतन, वैभव-दारिद्र्य, प्रज्ञा-मूढ़ता इत्यादि घटित होते हैं। कर्म आत्मा के शुद्ध स्वरूप को विविध रूप में आवृत किए रहते हैं। प्रत्येक कर्म के साथ उसकी अत्यधिक विभिन्नता पूर्ण अवस्थाएं जुड़ी हैं। उनकी तरतमता, न्यूनाधिकता, विशदता-अविशदता इत्यादि के परिणाम- स्वरूप आत्म-शक्ति प्रतिबद्ध रहती है। ज्यों-ज्यों आत्म-पराक्रम, तपश्चरण, संयम तथा निर्जरा मूलक उपक्रमों द्वारा वे कर्म जिन-जिन स्थितियों, अवस्थाओं में तरतम रूप से क्षय प्राप्त करते हैं, त्यों-त्यों वे शक्तियाँ, योग्यताएँ, विशेषताएं, जो आच्छन्न थीं, प्राकट्य पा लेती हैं। ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप आत्म स्वभाव विविध रूप में अभ्युदित होने लगता है। यहाँ जो क्षयनिष्पन्न भावों का वर्णन हुआ है, वे उन-उन कर्म प्रकृतियों के क्षय के निष्पत्ति पाते हैं, जिनके कारण वे अवरुद्ध थे।
क्षय और उपशम में यह भेद है कि कर्मों की प्रकृतियाँ जब क्षय प्राप्त करती हैं, क्षीण हो जाती हैं, वह बाधा सर्वथा उच्छिन्न हो जाती है, जो आत्म-विकास का अवरोध करती थी।
जिस प्रकार बीज अग्नि में जल जाता है, तो फिर वह उगता नहीं। कर्मक्षय ऐसी ही स्थिति है, कहा है -
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