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अनुयोगद्वार सूत्र
उनमें पुल्लिंग के अंत में आ, ई, ऊ, ओ - ये चार होते हैं। स्त्रीलिंग में भी ये ही तीन होते हैं किन्तु ओकार नहीं होता॥२॥
अं, इं तथा उं - ये नपुंसकलिंग के अंत में ज्ञातव्य हैं। इन तीनों के उदाहरणों की विवक्षा करूँगा। आकारान्त पुल्लिंग-राया (राजा), ईकारान्त पुल्लिंग - गिरी तथा सिहरी (गिरी एवं शिखरी), ऊकारान्त विण्हू (विष्णु) तथा ओकारान्त पुल्लिंग - दुमो (द्रुम-वृक्ष) है॥३,४॥ ____ आकारान्त स्त्रीलिंग - माला, ईकारान्त स्त्रीलिंग-सिरी तथा लच्छी, ऊकारान्त स्त्रीलिंग - जंबू, दहू होते हैं॥५॥
अंकारान्त नपुंसकलिंग - धण्णं, इकारान्त नपुंसकलिंग-अत्थिं, उंकारान्त नपुंसकलिंग - पीलुं तथा महुं होते हैं॥६॥
यह त्रिनाम का स्वरूप है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में पुल्लिंग, स्त्रीलिंग एवं नपुंसकलिंग की दृष्टि से तीनों प्रकार के शब्दों के आगे लगने वाले प्रत्ययों की चर्चा है। यह व्याकरण शास्त्र का विषय है। जो लिंगानुशासन के अन्तर्गत आख्यात है। संस्कृत, प्राकृत एवं पालि में तीन लिंग माने गये हैं। तीनों के रूप भिन्न-भिन्न होते हैं। यद्यपि लिंगों के संदर्भ में व्याकरण में अतिनिश्चित नियमन प्राप्त नहीं होता किन्तु अधिकांशतः तीनों लिंगों की पहचान के लिए कतिपय विशेष प्रत्यय निर्धारित हैं, जो स्वरात्मक हैं। “लिङ्गं लोकात्" - व्याकरण में ऐसी उक्ति है। जिसका आशय यह है कि लोकप्रयोगानुसार लिंग ज्ञातव्य है। इस सूत्र में उन प्रमुख प्रत्ययों का उल्लेख है, जो तीनों लिंगों में, भिन्न-भिन्न रूप में योजित किए जाते हैं।
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चतुर्नाम से किं तं चउणामे ?
चउणामे चउब्विहे पण्णत्ते। तंजहा - आगमेणं १ लोवेणं २ पयईए ३ विगारेणं ४।
शब्दार्थ - लोवेणं - लोप से, पयईए - प्रकृति से।
. चा
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