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________________ चतुर्नाम १६५ भावार्थ - चतुर्नाम के कितने प्रकार हैं? चतुर्नाम के चार प्रकार प्रतिपादित हुए हैं - १. आगमनिष्पन्न २. लोपनिष्पन्न ३. प्रकृतिनिष्पन्न तथा ४. विकारनिष्पन्न। से किं तं आगमेणं? आगमेणं - पद्माणि, पयांसि, कुण्डाणि । सेत्तं आगमेणं। से किं तं लोवेणं? लोवेणं - ते अत्र-तेऽत्र, पटो अत्र-पटोऽत्र, घटो अत्र घटोऽत्र। सेत्तं लोवेणं। से किं तं पगईए? . पगईए - अग्नी एतौ, पटू इमो, शाले एते, माले इमे। सेत्तं पगईए। से किं तं विगारेणं?. विगारेणं - दण्डस्य+अग्रं-दंडाग्र, सा+आगता साऽऽगता, दधि+इदं दधीदं, णदी+इह=णदीह, मधु+उदकंमधूदकं, वधू+ऊहः वधूहः। सेत्तं विगारेणं। सेत्तं चउणाणे। भावार्थ - आगमनिष्पन्न किस प्रकार का है? पद्मानि, पयांसि, कुंडानि आदि आगम निष्पन्न (के उदाहरण) हैं। यह आगमनिष्पन्न का स्वरूप है। लोपनिष्पन्न का क्या स्वरूप है? ते अत्र = तेऽत्र, पटो अत्र = पटोऽत्र, घटो अत्र = घटोऽत्र - ये लोपनिष्पन्न (के उदाहरण) हैं। यह लोपनिष्पन्न का वर्णन है। प्रकृतिनिष्पन्न किस प्रकार का है? अग्नी एतौ, पटू इमो, शाले एते, माले इमे - ये प्रकृतिनिष्पन्न (के उदाहरण) हैं। यह प्रकृतिनिष्पन्न का निरूपण हैं। विकारनिष्पन्न किस प्रकार का है? ११ पोम्माई, २ पयाई, ३ कुंडाई। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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