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________________ त्रिनाम यदि अनुत्तरोपपातिक देव अविशेषित हों तो १. विजय २. वैजयंत ३. जयंत भावार्थ ४. अपराजित ५. सर्वार्थसिद्ध विमानवर्ती देव विशेषित होंगे। ये सभी भी (पूर्व वर्णनानुसार) अविशेषित- विशेषित तदनंतर पर्याप्ति-अपर्याप्ति के भेद से वर्णनीय हैं। - अविसेसिए - अजीवदव्वे । विसेसिए - धम्मत्थिकाए १ अधम्मत्थिकाए २ आगासत्थिकाए ३ पोग्गलत्थिकाए ४ अद्धासमए य ५ । अविसेसिए पोग्गलत्थिकाए। विसेसिए - परमाणुपोग्गले, दुपएसिएतिपएसिए जाव अणंतपएसिए य। सेत्तं दुणा भावार्थ यदि अजीव द्रव्य अविशेषित हों तो १. धर्मास्तिकाय २. अधर्मास्तिकाय ३. आकाशास्तिकाय ४. पुद्गलास्तिकाय ५. काल विशेषित होंगे। । यदि पुद्गलास्तिकाय को अविशेषित माना जाय तो परमाणुपुद्गल द्विप्रदेशिक पुद्गल यावत् अनंतप्रदेशिक पुद्गल विशेषित होंगे। यह द्विनाम का निरूपण है। Jain Education International १५७ विवेचन - उपर्युक्त सूत्रों में अविशेषित और विशेषित की अपेक्षा से विवेचन किया गया है। जैसा पहले ज्ञापित हुआ है, यह न्यायदर्शन सम्मत सामान्य ( अविशेषित) और विशेष (विशेषित) के आधार पर है। प्रत्येक वस्तु सामान्य विशेषात्मक होती है । से किं तं तिणामे ? जैसे- संसारवर्ती समस्त घटों में घटत्व सामान्य है । अर्थात् घटत्व की दृष्टि से वे सामान्य या अविशेषित हैं किन्तु रूप, आकार, वर्णन इत्यादि की दृष्टि से वे विशेषित हो जाते हैं क्योंकि घटत्व सामान्य के बावजूद विविध प्रकार के वैशिष्ट्य भी उनमें प्राप्त हैं । सामान्य संग्रहनय का विषय है। सामान्य के अन्तर्गत तत्सदृश सभी वस्तुएं भी आ जाती हैं। विशेष व्यवहार नय का विषय है, जहाँ विभिन्न वस्तुओं के बहिर्वर्ती लक्षणों के आधार पर अंकन होता है। (१२४) त्रिनाम - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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