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________________ १५८ अनुयोगद्वार सूत्र तिणामे तिविहे पण्णत्ते। तंजहा - दव्वणामे १ गुणणामे २ पज्जवणामे य ३ । भावार्थ - त्रिनाम के कितने भेद हैं? त्रिनाम तीन प्रकार का बतलाया गया है - १. द्रव्यनाम २. गुणनाम तथा ३. पर्यायनाम । विवेचन - इस सूत्र में द्रव्यनाम, गुणनाम एवं पर्यायनाम के रूप में त्रिनाम का वर्णन है। 'द्रवति - विविधान् पर्यायान् प्राप्नोतीति द्रव्यम्” - जो विभिन्न पर्यायों या अवस्थाओं को प्राप्त करता है, उसे द्रव्य कहा जाता है । द्रव्य का यह व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है। “गुणपर्यायाश्रयोद्रव्यम्” जैन न्याय में द्रव्य की यह परिभाषा दी गई है, जिसका अभिप्राय यह है, जिसमें गुण एवं पर्याय हों, उसे गुण कहते हैं । वर्तमान, भूत और भविष्यत् - तीनों कालों में रहने वाला असाधारण धर्म गुण कहा जाता है। प्रतिसमय परिवर्तित होने वाली अवस्था को पर्याय कहा जाता है। गुण ध्रुव- नित्यव्यापी हैं, पर्याय उत्पन्न होते हैं, विनष्ट होते हैं। इसी दृष्टि से " उत्पाद व्यय ध्रौव्य युक्तं सत्" द्रव्य की यह परिभाषा की गई है। - मूल स्वरूप की दृष्टि से द्रव्य में ध्रुवता है । निरन्तर परिवर्तनशील अवस्थाओं की दृष्टि से अध्रुवता या उत्पादव्ययता है। इन तीनों को लेकर त्रिनाम का निरूपण किया गया है। द्रव्यनाम से किं तं दव्वणामे ? दव्वणामे छव्विहे पण्णत्ते । तंजहा - धम्मत्थिकाए १ अधम्मत्थिकाए २ आगासत्थिकाए ३ जीवत्थिकाए ४ पुग्गलत्थिकाए ५ अद्धासमए य ६ । सेत्तं दव्वणामे । भावार्थ - द्रव्यनाम कितने प्रकार का है? - द्रव्यनाम छह प्रकार का है १. धर्मास्तिकाय २. अधर्मास्तिकाय ३. आकाशास्तिकाय ४. जीवास्तिकाय ५. पुद्गलास्तिकाय तथा ६. काल । यह द्रव्यनाम का स्वरूप है। गुणनाम Jain Education International किं तं गुणणामे ? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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