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द्विनाम का स्वरूप
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इसी प्रकार अप्काय, तैजस्काय, वायुकाय एवं वनस्पतिकाय के संदर्भ में विशेषितअविशेषित, पर्याप्त-अपर्याप्त संज्ञक विवेचन ग्राह्य है।
अविसेसिए-बेइंदिए। विसेसिय-पजत्तयबेइंदिए य, अपजत्तयबेइंदिए य। एवं तेइंदिय चउरिंदिया वि भाणियव्वा।
भावार्थ - द्वीन्द्रिय जीव अविशेषित हों तो पर्याप्ति-अपर्याप्ति युक्त द्वीन्द्रिय विशेषित हैं। इसी प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय भी कथनीय हैं।
अविसे सिए - पंचिंदियतिरिक्खजोणिए। विसेसिए-जलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिए, थलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिए, खहयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिए।
अविसेसिए - जलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिए। विसेसिए-संमुच्छिमजलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिए य, गब्भवक्कंतियजलयर-पंचिंदियतिरिक्खजोणिए य।
अविसेसिए - संमुच्छिम जलयरपंचिंदिय-तिरिक्खजोणिए। विसेसिए- : पज्जत्तय-समुच्छिमजलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिए य, अपजत्तयसंमुच्छिम जलयरपंचिंदिय-तिरिक्खजोणिए य।
अविसेसिए - गब्भवक्कंतियजलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिए। विसेसिए - पजत्तयगब्भवक्कंतियजलयर-पंचिंदियतिरिक्खजोणिए य, अपज्जत्तयगब्भवक्कंतिय-जलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिए य।
शब्दार्थ - खहयर - खेचर-गगनचर, गब्भवक्कंतिय - गर्भव्युत्क्रांतिक-गर्भोत्पन्न।
भावार्थ - पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीव अविशेषित हैं तो जलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यंच योनिक, स्थलचर-पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक तथा खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक विशेषित हैं।
___ यदि जलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यंच योनिक को अविशेषित मानते हैं तब सम्मूर्च्छिम-जलचरपंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक तथा गर्भव्युत्क्रान्तिक जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक को विशेषित मानना होगा
यदि सम्मूर्छिम-जलचर-पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक अविशेषित होंगे तो पर्याप्ति युक्त सम्मूर्छिम जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक तथा पर्याप्ति रहित सम्मूर्छिम जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक विशेषित होंगे।
(पुनश्च), गर्भव्युत्क्रान्तिक जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक अविशेषित हैं तो पर्याप्ति युक्त
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