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अनुयोगद्वार सूत्र
भावार्थ - नैरयिक अविशेषित हैं तथा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा एवं तमस्तमः प्रभा के नारक विशेषित हैं। ___ यदि रत्नप्रभा नरक के नैरयिक अविशेषित माने जाते हैं तब रत्नप्रभा के पर्याप्त नारक एवं अपर्याप्त नारक विशेषित हैं। इसी प्रकार यावत् तमस्तमः प्रभा भूमि के नैरयिकों को अविशेषित मानने पर पर्याप्त-अपर्याप्त रूप विशेषित मूलक विवेचन ग्राह्य होगा।
अविसेसिए - तिरिक्खजोणिए। विसेसिए - एगिदिए, बेइंदिए, तेइंदिए, चउरिदिए, पंचिंदिए।
अविसेसिए - एगिदिए। विसेसिए - पुढविकाइए, आउकाइए, तेउकाइए, वाउकाइए, वणस्सइकाइए।
अविसेसिए - पुढविकाइए। विसेसिए - सुहुमपुढविकाइए य, बायरपुढविकाइए य।
अविसेसिए-सुहुमपुढविकाइए। विसेसिए- पजत्तयसुहुमपुढविकाइए य, अपजत्तयसुहुम-पुढविकाइए य। .
अविसेसिए - बायरपुढविकाइए। विसेसिए - पजत्तयबायर-पुढविकाइए य, अपजत्तयबायर-पुढविकाइए य।
एवं आउकाइए, तेउकाइए, वाउकाइए, वणस्सइकाइए, अविसेसियविसेसियपजत्तयअपज्जत्तयभेएहिं भाणियव्वा।
भावार्थ - तिर्यंच योनिक जीव अविशेषित हों तो एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय प्राणी विशेषित होंगे।
यदि एकेन्द्रिय जीव विशेषित माने जाते हैं तब पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तैजस्कायिक, वायुकायिक तथा वनस्पतिकायिक जीव विशेषित होंगे।
पृथ्वीकायिक जीव अविशेषित हैं, सूक्ष्मपृथ्वीकायिक एवं बादरकायिक विशेषित हैं।
यदि सूक्ष्मपृथ्वीकायिक अविशेषित हैं तो पर्याप्ति युक्त एवं पर्याप्ति रहित सूक्ष्मकायिक विशेषित होंगे।
बादर पृथ्वीकायिक अविशेषित हैं तथा पर्याप्ति युक्त एवं पर्याप्ति रहित बादर पृथ्वीकायिक विशेषित हैं।
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