________________
द्विनाम का स्वरूप
१४६
चैतन्यविरहित अजीव हैं। जीव कहने मात्र से संसारगत समस्त जीवों की व्यावहारिक पहचान नहीं होती। अतएव उन्हें भिन्न-भिन्न नाम दिए गए हैं। जिनसे उनकी पहचान होती है। यही बात अजीव तत्त्व के साथ है। वहाँ भी अजीव पदार्थों के भिन्न-भिन्न पर्यायों के अनुरूप अलग-अलग नाम दिए गए हैं, जिनसे उनकी भिन्नता या पार्थक्य की पहचान होती है। इसी पद्धति से लोकव्यवहार सधता है।
जीव-अजीव की द्विविधता के कारण यहाँ द्विनाम की संगति है।
अहवा दुणामे दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - विसेसिए य १ अविसेसिए य २। अविसेसिए-दव्वे। विसेसिए - जीवदव्वे, अजीवदव्वे य। अविसेसिए-जीवदव्वे। विसेसिए-णेरइए, तिरिक्खजोणिए, मणुस्से, देवे। . .. शब्दार्थ - विसेसिए - विशेषित, अविसेसिए - अविशेषित।
भावार्थ - अथवा, द्विनाम द्विप्रकार का बतलाया गया है - विशेषित तथा अविशेषित। अविशेषित द्रव्य रूप एवं विशेषित जीव द्रव्य एवं अजीव द्रव्य रूप है।
(अन्य अपेक्षा से) यदि जीव द्रव्य को अविशेषित मानते हैं तब नैरयिक, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य और देव - (जीव के ये भिन्न-भिन्न गति रूप पर्याय) विशेषित होंगे। ... विवेचन - उपर्युक्त सूत्र में आए 'विशेषित-अविशेषित' न्याय शास्त्र में वर्णित सामान्य
और विशेष के द्योतक हैं। द्रव्य की दृष्टि से जीव और अजीव सामान्य की कोटि में आते हैं क्योंकि दोनों में द्रव्यत्व सामान्य है। इसलिए इस दृष्टि से वहाँ विशेषता या वैशिष्ट्य का अंकन नहीं होता। अतः द्रव्य रूप में जीव और अजीव को अविशेषित शब्द से अभिहित किया गया है। किन्तु द्रव्य के जीव और अजीव के रूप में दो भेदों पर विचार किया जाता है तब उनमें परस्पर गुण, पर्याय आदि की दृष्टि से विशेषता या भिन्नता होती है। इसी क्रम से आगे जब जीव और उसकी विभिन्न गतियों पर विचार किया जाता है तब जीव पद की अविशेषित संज्ञा तथा चतुर्गतियों की अविशेषित संज्ञा होती है।
अविसेसिए-णेरइए। विसेसिए - रयणप्पहाए, सक्करप्पहाए, वालुयप्पहाए, पंकप्पहाए, धूमप्पहाए, तमाए, तमतमाए। अविसेसिए-रयणप्पहापुढविणेरइए। विसेसिए - पज्जत्तए य, अपज्जत्तए य। एवं जाव अविसेसिए - तमतमापुढविणेरइए। विसेसिए - पज्जत्तए य, अपज्जत्तए य।
शब्दार्थ - पज्जत्तए - पर्याप्ति युक्त, अपज्जत्तए - अपर्याप्ति युक्त।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org