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अनुयोगद्वार सूत्र
से किं तं पच्छाणुपुवी ?
पच्छाणुपुव्वी-उवसंपया जाव इच्छागारो। सेत्तं पच्छाणुपुव्वी ।
से किं तं अणाणुपुव्वी?
अणाणुपुव्वी - एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए दसगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणो । सेत्तं अणाणुपुवी । सेत्तं सामायारी आणुपुव्वी । भावार्थ - समाचारी - आनुपूर्वी कितने प्रकार की होती है ?
समाचारी - आनुपूर्वी तीन प्रकार की प्रतिपादित हुई है - १. पूर्वानुपूर्वी २. पश्चानुपूर्वी एवं ३. अनानुपूर्वी ।
पूर्वानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ?
गाथा - १. इच्छाकार २. मिथ्याकार ३. तथाकार ४. आवश्यकी ५. नैषेधिकी ६. आपृच्छना ७. प्रतिपृच्छना ८. छंदना ६. निमंत्रणा और १०. उपसंपदा के क्रम विन्यास से इन पदों की स्थापना करना पूवानुपूर्वी है । यह पूर्वानुपूर्वी का स्वरूप है।
पश्चानुपूर्वी का कैसा स्वरूप है ?
१०. उपसंपदा से लेकर यावत् १. इच्छाकार पर्यन्त विपरीत क्रम में इन (१०) पदों का संस्थापन पश्चानुपूर्वी है।
अनानुपूर्वी का कैसा स्वरूप है ?
एक (इच्छाकार) से लेकर एक-एक की उत्तरोत्तर वृद्धि करते हुए दस (उपसंपदा) तक की संस्थाओं को श्रेणी रूप में व्यवस्थित कर परस्पर गुणा करने से प्राप्त राशि में से प्रथम और अं भंग को हटाने पर शेष भंग अनानुपूर्वी रूप हैं।
यह अनानुपूर्वी का वर्णन है ।
इस प्रकार समाचारी आनुपूर्वी का विवेचन संपन्न होता है ।
विवेचन - संयमानुकूल आचार विधा, जिससे आत्म-साधना परिपुष्ट हो, संयताचरणशील पुरुष जिसका आचरण करते रहे हों, वैसी संयममूलक कृत्यविधा समाचारी है।
जैन दर्शन में आचार का सर्वाधिक महत्त्व है। मनोवैज्ञानिक रूप में उस पर अग्रसर होने के लिए विशेष उपक्रम स्वीकार किए गए हैं। उनका एक मात्र यही उद्देश्य है कि साधक आत्म
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