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________________ गणनानुपूर्वी का निरूपण १३५ अणाणुपुव्वी-एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए चउवीसगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणो। सेत्तं अणाणुपुव्वी। सेत्तं उक्कित्तणाणुपुव्वी। शब्दार्थ - उक्कित्तणाणुपुव्वी - उत्कीर्तनानुपूर्वी। भावार्थ - उत्कीर्तनानुपूर्वी कितने प्रकार की है? उत्कीर्तनानुपूर्वी - पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी एवं अनानुपूर्वी के रूप में तीन प्रकार की प्रज्ञापित पूर्वानुपूर्वी का क्या स्वरूप है? १. ऋषभ २. अजित ३. संभव ४. अभिनंदन ५. सुमति ६.पद्मप्रभ ७. सुपार्श्व ८. चन्द्रप्रभ ६. सुविधि १०. शीतल ११. श्रेयांस १२. वासुपूज्य १३. विमल १४. अनंत १५. धर्म १६. शांति १७. कुन्थु १८. अर १६. मल्लि २०. मुनिसुव्रत २१. नमि २२. अरिष्टनेमि २३. पार्श्व एवं २४. वर्धमान - इस क्रम से (इन पवित्र नामों का) उत्कीर्तन - उच्चारण करना पूर्वानुपूर्वी है। यह पूर्वानुपूर्वी का विवेचन है। पश्चानुपूर्वी का क्या स्वरूप है? २४. वर्धमान से प्रारम्भ कर यावत् १. ऋषभ पर्यन्त (विपरीत क्रम से) उत्कीर्तन करना - नाम उच्चारण करना पश्चानुपूर्वी है। अनानुपूर्वी का क्या स्वरूप है? । (उपर्युक्त उदाहरणानुसार ऋषभ से लेकर वर्द्धमान पर्यन्त) एक से लेकर एक-एक की वृद्धि करते हुए चौबीस पर्यन्त श्रेणी को स्थापित कर, परस्पर गुणा करने से प्राप्त राशि में से प्रथम और अंतिम भंग को कम करने से अवशिष्ट भंग अनानुपूर्वी रूप हैं। ___ यह उत्कीर्तनानुपूर्वी का निरूपण है। (११७) गणनानुपूर्वी का निरूपण से किं तं गणणाणुपुव्वी? गणणाणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता। तंजहा - पुव्वाणुपुव्वी १ पच्छाणुपुव्वी २ अणाणुपुव्वी ३॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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