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________________ १२६ अनुयोगद्वार सूत्र णेगमववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया-अत्थि आणुपुव्वी १ अस्थि अणाणुपुव्वी २ अत्थि अवत्तव्वए ३ एवं दव्वाणुपुव्वीगमेणं कालाणुपुव्वीए वि ते चेव छब्बीसं भंगा भाणियव्वा जाव सेत्तं णेगमववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया। भावार्थ - नैगमव्यवहारनय सम्मत भंगसमुत्कीर्तनता का क्या स्वरूप है? नैगमव्यवहारय सम्मत भंगसमुत्कीर्तनता - १. आनुपूर्वी २. अनानुपूर्वी एवं ३. अवक्तव्य के रूप में पूर्ववर्णित छब्बीस भंग द्रव्यानुपूर्वी के विवेचन के सदृश यहाँ कालानुपूर्वी के वर्णन में भणनीय-कथनीय हैं यावत् यह नैगमव्यवहारानुरूप भंगसमुत्कीर्तनता है। एयाए णं णेगमववहाराणं भंगसमुक्कित्तणयाए किं पओयणं? एयाए णं णेगमववहाराणं भंगसमुक्कित्तणयाए णेगमववहाराणं भंगोवदंसणया कज्ज। भावार्थ - इस नैगमव्यवहारनय सम्मत भंगसमुत्कीर्तनता का क्या प्रयोजन है? नैगमव्यवहारनय सम्मत भंगसमुत्कीर्तनता से भंगोपदर्शनता की जाती है। ममत्कीर्तनता से भंगोपदर्शनता की जाती है। (११०) __ (स) भंगोपदर्शनता से किं तं गमववहाराणं भंगोवदंसणया? णेगमववहाराणं भंगोवदंसणया-तिसमयट्टिइए आणुपुव्वी १ एगसमयट्टिइए अणाणुपुव्वी २ दुसमयट्टिइए अवत्तव्वए ३ तिसमयट्टिइयाओ आणुपुव्वीओ ४ एगसमयट्टिइयाओ अणाणुपुव्वीओ५ दुसमयट्टिइयाणं अवत्तव्वगाई। अहवा तिसमयट्टिइए य एगसमयट्टिइए य आणुपुव्वी य अणाणुपुव्वी य एवं तहा दव्वाणुपुव्वीगमेणं छव्वीसं भंगा भाणियव्वा जाव सेत्तं गमववहाराणं भंगोवदंसणया। भावार्थ - नैगम व्यवहारनय सम्मत भंगोपदर्शनता का क्या स्वरूप है? नैगम व्यवहारनय सम्मत भंगोपदर्शनता का स्वरूप इस प्रकार है - १. त्रिसमयस्थितियुक्त द्रव्य आनुपूर्वी २. एक समयस्थितियुक्त द्रव्य अनानुपूर्वी ३. द्विसमयस्थितियुक्त द्रव्य अवक्तव्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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