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भंगसमुत्कीर्तनता
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एगसमयट्टिइए अणाणुपुव्वी, दुसमयट्टिइए अवत्तव्वए, तिसमयट्टिइयाओ आणुपुव्वीओ, एगसमयट्टिइयाओ अणाणुपुव्वीओ, दुसमयट्टिइयाइं अवत्तव्वगाई। सेत्तं णेगमववहाराणं अट्ठपयपरूवणया।
भावार्थ - नैगमव्यवहार सम्मत अर्थपदप्ररूपणता का क्या स्वरूप है? नैगमव्यवहार सम्मत अर्थपदप्ररूपणता का प्रतिपादन इस प्रकार है -
त्रिसमयस्थितियुक्त यावत् दशसमयस्थितियुक्त, संख्यातसमय स्थिति युक्त, असंख्यात समयस्थितियुक्त द्रव्य आनुपूर्वी रूप हैं।
एक समयस्थितियुक्त द्रव्य आनुपूर्वी एवं द्विसमयस्थितियुक्त द्रव्य अवक्तव्य, त्रिसमयस्थितियुक्त अनेक द्रव्य आनुपूर्वियाँ, एक समयस्थितियुक्त अनेक द्रव्य आनुपूर्वियाँ, द्विसमयस्थितियुक्त अनेक द्रव्य अवक्तव्य रूप हैं। .
यह नैगम-व्यवहार सम्मत अर्थपदप्ररूपणता का स्वरूप है।
विवेचन - द्रव्यानुपूर्वी में द्रव्य की प्रधानता रहती है, जबकि कालानुपूर्वी में काल की। आशय यह है कि द्रव्यानुपूर्वी में परमाणु अनानुपूर्वी, व्यणुक अवक्तव्यक और त्र्याणुकादि द्रव्य आनुपूर्वी माना जाता है। परन्तु कालानुपूर्वी में एक समय की स्थिति रखने वाले सभी द्रव्य अनानुपूर्वी, दो समय की स्थिति रखने वाले अवक्तव्यक और त्र्यादि समयों की स्थिति वाले द्रव्य आनुपूर्वी के रूप में माने जाते हैं। यही इन दोनों में अन्तर है।
एयाए णं णेगमववहाराणं अट्ठपयपरूवणयाए किं पओयणं?० णेगमववहाराणं अट्ठपयपरूवणयाए णेगमववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया कजइ। भावार्थ - इस गम व्यवहारनयानुरूप अर्थपदप्ररूपणता का क्या प्रयोजन है? नैगम व्यवहारनयानुरूप अर्थपदप्ररूपणता से भंगसमुत्कीर्तनता की जाती है।
(१०६)
(ब) भंगसमुत्कीर्तनता से किं तं णेगमववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया?
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