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________________ १२४ अनुयोगद्वार सूत्र भावार्थ - कालानुपूर्वी कितने प्रकार की है? कालानुपूर्वी दो प्रकार की है - १. औपनिधिकी एवं २. अनौपनिधिकी। (१०६) तत्थ णं जा सा उवणिहिया सा ठप्पा। भावार्थ - उनमें जो औपनिधिकी है, वह स्थाप्य है? तत्थ णं जा सा अणोवणिहिया सा दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - णेगमववहाराणं १ संगहस्स य । भावार्थ - इनमें जो अनौपनिधिकी है, वह द्विविध बतलाई गई है - १. नैगम-व्यवहार सम्मत २. संग्रह सम्मत। (१०७) नैगमव्यवहारानुरूप अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी से किं तं गमववहाराणं अणोवणिहिया कालाणुपुव्वी? ' णेगमववहाराणं अणोवणिहिया कालाणुपुव्वी पंचविहा पण्णत्ता। तंजहा - अट्ठपयपरूवणया १ भंगसमुक्कित्तणया २ भंगोवदंसणया ३ समोयारे ४ अणुगमे ५। भावार्थ - नैगम-व्यवहारनयानुरूप अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी कितने प्रकार की है? · नैगमव्यवहारनयानुरूप अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी पाँच प्रकार की बतलाई गई है - १. अर्थपदप्ररूपणता २. भंगसमुत्कीर्तनता ३. भंगोपदर्शनता ४. समवतार एवं ५. अनुगम। (१०८) (अ) अर्थपदप्ररूपणता से किं तं णेगमववहाराणं अट्ठपयपरूवणया? णेगमववहाराणं अट्ठपयपरूवणया-तिसमयट्टिइए आणुपुव्वीजावदससमयट्टिइए आणुपुव्वी, संखिजसमयट्टिइए आणुपुव्वी, असंखिजसमयटिइए आणुपुव्वी, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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