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अधोलोक क्षेत्रानुपूर्वी
..................११६ से किं तं अणाणुपुव्वी?
अणाणुपुव्वी-एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए सत्तगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणो। सेत्तं अणाणुपुव्वी।
भावार्थ - अनानुपूर्वी का क्या स्वरूप है?
एक से प्रारम्भ कर सात तक एक-एक को बढ़ाते जाने से विनिर्मित श्रेणी के अंकों का परस्पर गुणन करने पर प्राप्त राशि में से आद्य और अंतिम भंगों को निष्कासित कर देने पर अवशिष्ट राशिमूलक भंग अनानुपूर्वी रूप हैं।
यह अनानुपूर्वी का निरूपण है।
तिरियलोयखेत्ताणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता। तंजहा - पुव्वाणुपुव्वी १ पच्छाणुपुव्वी २ अणाणुपुव्वी ३।
भावार्थ - तिर्यक्लोक क्षेत्रानुपूर्वी तीन प्रकार की कही गई है - १. पूर्वानुपूर्वी २. पश्चानुपूर्वी ३. अनानुपूर्वी।
से किं तं पुव्वाणुपुव्वी? पुव्वाणुपुव्वी - गाहाओ - जंबूदीवे लवणे, धायइ कालोय पुक्खरे वरुणे।
खीर घय खोय णंदी, अरुणवरे कुंडले रुयगे॥१॥ आभरण+वत्थ गंधे, उप्पल तिलए य पुढवि णिहिरयणे। वासहर दह गईओ, विजया वक्खार कप्पिंदा॥२॥ कुरु मंदर आवासा, कूडा णक्खत्त चंद सूरा य।
देवे णागे जक्खे, भूए य सयंभुरमणे य॥३॥ सेत्तं पुव्वाणुपुव्वी। भावार्थ - पूर्वानुपूर्वी का कैसा स्वरूप है? गाथाएँ - मध्यलोक क्षेत्र पूर्वानुपूर्वी का स्वरूप इस प्रकार है - + जंबुद्दीवाओ खलु, णिरंतरा सेसया असंखइमा।
भुयगवर कुसवराविय, कोंचवराभरणमाई व। वायणंतरे एसा गाहा वि लब्भइ।
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