SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२० अनुयोगद्वार सूत्र जंबूद्वीप, लवण समुद्र, धातकीखण्ड द्वीप, कालोदधि समुद्र, पुष्कर द्वीप, पुष्करोद समुद्र, वरुण द्वीप, वरुणोद समुद्र, क्षीर द्वीप, क्षीरोद समुद्र, घृत द्वीप, घृतोद समुद्र, इक्षुवर द्वीप, इक्षुवर समुद्र, नंदी द्वीप, नंदी समुद्र, अरुणवर द्वीप, अरुणवर समुद्र, कुण्डल द्वीप, कुण्डल समुद्र, रुचक द्वीप, रुचक समुद्र हैं।॥१॥ ___ आभरण xx - अलंकार, वस्त्र, गंध, उत्पल - कमल विशेष, तिलक, पद्म, निधि, रत्न, वर्षधर, हृद, नदी, विजय, वक्षस्कार, कल्पेन्द्र, कुरु, मंदर, आवास, कूट, नक्षत्र, चंद्र एवं सूर्य देव, नाग, यक्ष, भूत आदि के पर्यायवाची नामानुरूप द्वीप समुद्र असंख्यात हैं तथा अंत में स्वयंभूरमण द्वीप तथा समुद्र हैं॥२,३॥ यह पूर्वानुपूर्वी का विवेचन है। विवेचन - जीवाभिगम सूत्र के अनुसार अरुणद्वीप से लेकर सूर्य द्वीप तक सभी द्वीप एवं समुद्र त्रिप्रत्ययावतार (तीन-तीन नामों वाले) आये हुए हैं। जैसे - १. अरुण द्वीप २. अरुण समुद्र ३. अरुणवर द्वीप ४. अरुणवर समुद्र ५. अरुणवरावभास द्वीप ६. अरुणवरावभासं समुद्र। इसी प्रकार सूर्य द्वीप तक समझना चाहिये। अंत में पांच द्वीप समुद्र एक-एक नाम के आये हुए हैं यथा१. देव द्वीप, देव समुद्र '२. नाग द्वीप, नाग समुद्र ३. यक्ष द्वीप, यक्ष समुद्र ४. भूत द्वीप, भूत समुद्र ५. स्वयंभूरमण द्वीप, स्वयंभूरमण समुद्र। पश्चानुपूर्वी से किं तं पच्छाणुपुव्वी? पच्छाणुपुव्वी - सयंभूरमणे य जाव जंबूदीवे। सेत्तं पच्छाणुपुव्वी। भावार्थ - पश्चानुपूर्वी का क्या स्वरूप है? स्वयंभूरमण समुद्र यावत् जंबू द्वीप पर्यन्त विपरीत क्रम से ये सारे पश्चानुपूर्वी रूप हैं। यह पश्चानुपूर्वी का निरूपण है। वाचनांतर में इस गाथा के पहले निम्नांकित गाथा प्राप्त होती है - जंबूद्वीप से लेकर समस्त द्वीप - समुद्र बिना किसी अन्तर के एक दूसरे को आवृत किए हुए हैं - घेरे हुए हैं। इनके आगे असंख्यात - असंख्यात द्वीप समुद्रों के अनंतर - अन्तर के बिना संलग्न भुजगवर एवं उनके अनंतर असंख्यात द्वीप समुद्रों के पश्चात् कुशलवर द्वीप समुद्र है एवं इसके बाद भी असंख्यात द्वीप समुद्रों के पश्चात् कोंचवर संज्ञक द्वीप हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy