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________________ ११८ से किं तं अणाणुपुव्वी? अणाणुपुव्वी - एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए तिगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणो । सेत्तं अणाणुपुव्वी । भावार्थ - अनानुपूर्वी किसे कहा जाता है ? एक से शुरू कर, एक-एक की वृद्धि द्वारा निर्मित तीन-तीन की श्रेणी में परस्पर गुणन करने पर प्राप्त राशि में से प्रारम्भिक और अंतिम दो भंगों का परिवर्जन करने पर जो भंग अवशिष्ट - रहते हैं, वह अनानुपूर्वी है। यह अनानुपूर्वी का निरूपण है। अनुयोगद्वार सूत्र अधोलोक क्षेत्रानुपूर्वी अहोलोयखेत्ताणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता । तंजहा - पुव्वाणुपुव्वी १ पच्छाणुपुवी २ अणाणुपुव्वी ३ । भावार्थ - अधोलोक क्षेत्रानुपूर्वी तीन प्रकार की प्रतिपादित हुई है - १. पूर्वानुपूर्वी २. पश्चानुपूर्वी एवं ३. अनानुपूर्वी । से किं तं पुव्वाणुपुव्वी? पुव्वाणुपुव्वी - रयणप्पभा १ सक्करप्पभा २ वालुयप्पभा ३ पंकप्पभा ४ धूमप्पभा ५ तमप्पभा ६ तमतमप्पभा ७ । सेत्तं पुव्वाणुपुव्वी । भावार्थ - पूर्वानुपूर्वी कितने प्रकार की है ? पूर्वानुपूर्वी - १. रत्नप्रभा २. शर्कराप्रभा ३. बालुकाप्रभा ४. पंकप्रभा ५. धूमप्रभा ६. तमः प्रभा ७. तमस्तमःप्रभा, पूर्वानुपूर्वी इस क्रमानुसार सात प्रकार की है। से किं तं पच्छाणुपुवी? पच्छाणुपुव्वी- तमतमप्पभा ७ जाव रयणप्पभा १ । सेत्तं पच्छाणुपुवी । भावार्थ - पश्चानुपूर्वी कितने प्रकार की है ? यह तमस्तमःप्रभा यावत् रत्नप्रभा पर्यन्त (व्यतिक्रम - विपरीत क्रम से) सात प्रकार की है। यह पश्चानुपूर्वी का विवेचन है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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