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से किं तं अणाणुपुव्वी?
अणाणुपुव्वी - एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए तिगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणो । सेत्तं अणाणुपुव्वी ।
भावार्थ - अनानुपूर्वी किसे कहा जाता है ?
एक से शुरू कर, एक-एक की वृद्धि द्वारा निर्मित तीन-तीन की श्रेणी में परस्पर गुणन करने पर प्राप्त राशि में से प्रारम्भिक और अंतिम दो भंगों का परिवर्जन करने पर जो भंग अवशिष्ट
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रहते हैं, वह अनानुपूर्वी है।
यह अनानुपूर्वी का निरूपण है।
अनुयोगद्वार सूत्र
अधोलोक क्षेत्रानुपूर्वी
अहोलोयखेत्ताणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता । तंजहा - पुव्वाणुपुव्वी १ पच्छाणुपुवी २ अणाणुपुव्वी ३ ।
भावार्थ - अधोलोक क्षेत्रानुपूर्वी तीन प्रकार की प्रतिपादित हुई है
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१. पूर्वानुपूर्वी २. पश्चानुपूर्वी एवं ३. अनानुपूर्वी ।
से किं तं पुव्वाणुपुव्वी?
पुव्वाणुपुव्वी - रयणप्पभा १ सक्करप्पभा २ वालुयप्पभा ३ पंकप्पभा ४ धूमप्पभा
५ तमप्पभा ६ तमतमप्पभा ७ । सेत्तं पुव्वाणुपुव्वी ।
भावार्थ - पूर्वानुपूर्वी कितने प्रकार की है ?
पूर्वानुपूर्वी - १. रत्नप्रभा २. शर्कराप्रभा ३. बालुकाप्रभा ४. पंकप्रभा ५. धूमप्रभा ६. तमः प्रभा ७. तमस्तमःप्रभा, पूर्वानुपूर्वी इस क्रमानुसार सात प्रकार की है।
से किं तं पच्छाणुपुवी?
पच्छाणुपुव्वी- तमतमप्पभा ७ जाव रयणप्पभा १ । सेत्तं पच्छाणुपुवी । भावार्थ - पश्चानुपूर्वी कितने प्रकार की है ?
यह तमस्तमःप्रभा यावत् रत्नप्रभा पर्यन्त (व्यतिक्रम - विपरीत क्रम से) सात प्रकार की है। यह पश्चानुपूर्वी का विवेचन है।
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