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औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी
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इस प्रकार क्षेत्रानुपूर्वी के शेष द्वार पूर्व वर्णित द्रव्यानुपूर्वी की भांति आख्येय हैं यावत् यह अनुगम का स्वरूप है।
यह संग्रहनय सम्मत क्षेत्रानुपूर्वी का निरूपण है। इस प्रकार क्षेत्रानुपूर्वी अनौपनिधिकी का विवेचन परिसमाप्त होता है। .
(१०४) . औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी से किं तं उवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी?
उवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता। तंजहा - पुव्वाणुपुव्वी १ पच्छाणुपुव्वी २ अणाणुपुव्वी य ३।
भावार्थ - औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी के कितने प्रकार हैं? .
औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी तीन प्रकार की प्रतिपादित हुई हैं - १. पूर्वानुपूर्वी २. पश्चानुपूर्वी और ३. अनानुपूर्वी।
से किं तं पुव्वाणुपुवी? पुव्वाणुपुव्वी-अहोलोए १ तिरियलोए २ उद्दलोए ३। सेत्तं पुव्वाणुपुव्वी। शब्दार्थ - अहोलोए - अधोलोक, तिरियलोए - तिर्यक् लोक, उद्दलोए - ऊर्ध्वलोक। भावार्थ - पूर्वानुपूर्वी का क्या स्वरूप है?
अधोलोक, तिर्यक्लोक एवं ऊर्ध्वलोक - यों क्रमानुसार क्षेत्र या लोक का निर्देश करना पूर्वानुपूर्वी कहा जाता है।
यह पूर्वानुपूर्वी का स्वरूप है। से किं तं पच्छाणुपुव्वी? पच्छाणुपुव्वी-उहलोए ३ तिरियलाए २ अहोलोए १। सेत्तं पच्छाणुपुव्वी। भावार्थ - पश्चानुपूर्वी का क्या स्वरूप है?
पश्चानुपूर्वी ऊर्ध्वलोक, तिर्यक्लोक एवं अधोलोक - इस विपरीत क्रम से आख्यात है। - यह पश्चानुपूर्वी का निरूपण है।
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