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अनुयोगद्वार सूत्र
इस प्रकार इस क्षेत्रानुपूर्वी के विवेचन में शेष वर्णन संग्रहनय सम्मत द्रव्यानुपूर्वी की भांति कथनीय है यावत् यह भंगोपदर्शनता का स्वरूप है।
से किं तं समोयारे?
समोयारे-संगहस्स आणुपुव्वीदव्वाइं कहिं समोयरंति? किं आणुपुव्वीदव्वेहिं समोयरंति? अणाणुपुव्वीदव्वेहिं समोयरंति? अवत्तव्वयदव्वेहिं समोयरंति?
तिण्णि वि सट्ठाणे समोयरंति। सेत्तं समोयारे। भावार्थ - समवतार का क्या स्वरूप है?
संग्रहनयानुरूप आनुपूर्वी द्रव्य कहाँ समवतरित होते हैं ? क्या वे आनुपूर्वी द्रव्यों में समवतरित होते हैं? अनानुपूर्वी द्रव्यों में समवतरित होते हैं? अवक्तव्य द्रव्यों में समवतरित होते हैं? .
ये तीनों ही अपने-अपने स्थानों में समवतरित होते हैं। यह समवतार का स्वरूप है। से किं तं अणुगमे? अणुगमे अट्ठविहे पण्णत्ते। तंजहागाहा - संतपयपरूवणया, दव्वपमाणं च खित्त फुसणा य।
कालो य अंतरं भाग, भावे अप्पाबहंणत्थि॥१॥ भावार्थ - अनुगम कितने प्रकार का है? अनुगम आठ प्रकार का प्रतिपादित हुआ है यथा -
गाथा - १. सत्पदप्ररूपणता २. द्रव्यप्रमाण ३. क्षेत्र ४. स्पर्शना ५. काल ६. अंतर ७. भाग ८. भाव। यहाँ अल्पबहुत्व का नास्तित्व है।
संगहस्स आणुपुव्वीदव्वाइं किं अस्थि णत्थि? णियमा अत्थि। एवं दुण्णि वि। सेसगदाराइं जहा दव्वाणुपुव्वीए संगहस्स तहा खेत्ताणुपुव्वीए वि भाणियव्वाइं जाव सेत्तं अणुगमे। सेत्तं संगहस्स अणोवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी। सेत्तं अणोवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी।
भावार्थ - क्या संग्रहनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य हैं या नहीं है? (वे) नियमतः हैं। इसी प्रकार शेष दोनों भी ज्ञातव्य हैं।
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