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________________ अनौपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी ११५ विवेचन - जिस प्रकार संग्रहनय के मत से द्रव्यानुपूर्वी में बहुत से त्रिप्रदेशी स्कन्धों को सामान्यतया एकत्व की विविक्षा से एक आनुपूर्वी कहा है। इसी प्रकार अनानुपूर्वी में भी बहुत से परमाणु पुद्गलों को एवं अवक्तव्य में बहुत से दो प्रदेशी स्कन्धों को एकत्व की विविक्षा से एक माना गया है। वैसे ही यहाँ क्षेत्रानुपूर्वी में बहुत से त्रिप्रदेशावगाढ़ द्रव्यों को एकत्व की विविक्षा से एक आनुपूर्वी माना है। इसी प्रकार अनानुपूर्वी एवं अवक्तव्य के विषय में भी समझना चाहिये। __से किं तं संगहस्स भंगसमुक्कित्तणया? संगहस्स भंगसमुक्कित्तणया-अस्थि आणुपुव्वी १ अत्थि अणाणुपुव्वी २ अत्थि अवत्तव्वए ३ अहवा अत्थि आणुपुव्वी य अणाणुपुव्वी य एवं जहा दव्वाणुपुव्वीए संगहस्स तहा भाणियव्वा जाव सेत्तं संगहस्स भंगसमुक्कित्तणया। 'भावार्थ - संग्रहनय सम्मत भंगसमुत्कीर्तनता का क्या स्वरूप है? ____ संग्रहनय सम्मत भंग समुत्कीर्तनता - आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी, अवक्तव्य अथवा आनुपूर्वी - अनानुपूर्वी रूप है, शेष वर्णन जैसा द्रव्यानुपूर्वी में आया है, उसी प्रकार यहाँ कथन करने योग्य है यावत् संग्रहनय सम्मत भंगसमुत्कीर्तनता का स्वरूप है। एयाए णं संगहस्स भंगसमुक्कित्तणयाए किं पओयणं? एयाए णं संगहस्स भंगसमुक्कित्तणयाए भंगोवदंसणया कजइ। भावार्थ - संग्रहनय सम्मत भंगसमुत्कीर्तनता का क्या प्रयोजन है? इस. संग्रहनय सम्मत भंगसमुत्कीर्तनता से भंगोपदर्शनता का आख्यान होता है। से किं तं संगहस्स भंगोवदसणया? संगहस्स भंगोवदंसणया - तिपएसोगाढा आणुपुव्वी १ एगपएसोगाढे अणाणुपुव्वी २ दुपएसोगाढा अवत्तव्वए ३ अहवा तिपएसोगाढा य एगपएसोगाढा य आणुपुव्वी य अणाणुपुव्वी य एवं जहा दव्वाणुपुव्वीए संगहस्स तहा खेत्ताणुपुव्वीए वि भाणियव्वं जाव सेत्तं संगहस्स भंगोवदंसणया। . भावार्थ - संग्रहनय सम्मत भंगोपदर्शनता का क्या स्वरूप है? संग्रहनय सम्मत भंगोपदर्शनता - १. बहुत त्रिप्रदेशावगाह युक्त एक आनुपूर्वी २. बहुत एक प्रदेशावगाहयुक्त एक अनानुपूर्वी तथा ३. बहुत द्विप्रदेशावगाहयुक्त एक अवक्तव्य अथवा बहुत त्रिप्रदेशावगाह, बहुत एक प्रदेशावगाह, एक आनुपूर्वी, एक अनानुपूर्वी रूप है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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